अब इंडिया दबाव में बिखरता नहीं बिखेर देता है

आज भारतीय खेलों के लिए ऐतिहासिक दिन है। भारत के के. श्रीकांत और साइ प्रणीत ने सिंगापुर ओपन के फाइनल में पहुंच कर इतिहास रच दिया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब दो भारतीय शटलर किसी सुपर सीरीज खिताब के लिए आपस में भिड़ रहे हैं। कल हुए पहले सेमीफाइनल मुकाबले में दुनिया के 30वें नंबर के खिलाड़ी प्रणीत ने तीन बार के कोरियाई मास्टर्स ग्रां प्रि चैम्पियन ली डोंग क्यून को  21-6, 21-8 से  हराकर  पहली बार किसी सुपर सीरीज के फाइनल का टिकट कटाया। वहीं श्रीकांत ने  इंडोनेशिया के एंथोनी सिनिसुका को  21-13, 21-14 से पराजित कर  एक आल इंडियन सिंगल्स फाइनल के लिए मंच तैयार किया। अब भारत चीन, इंडोनेशिया और डेनमार्क जैसे बैडमिंटन शक्तियों में शुमार हो गया है, जिनके दो खिलाड़ी किसी सुपर सीरीज बैडमिंटन टूर्नामेंट के फाइनल में आपस में भिड़ेंगे।

रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद खेल प्रशंसको ने खेलों के ‘अच्छे दिनों’ की उम्मीद तो छोड़ दी थी  लेकिन पिछले एक साल में भारतीय खिलाड़ियों ने दमदार प्रदर्शन कर उस उम्मीद को फिर से जिंदा कर दिया है। भारतीय खिलाड़ी अब दबाव में बिखर नहीं रहे बल्कि विरोधियों को ही बिखेर दे रहे हैं। इसकी झलक हमें पिछले दिनों ही देखने को मिली जब भारत की स्टार शटलर पी वी सिंधु ने इंडियन ओपन के सेमीफाइनल और फाइनल में दुनिया के नंबर दो और नंबर एक खिलाड़ी को लगातार मैचों में हराया और इंडिया ओपन का खिताब जीता। खासकर सेमीफाइनल मैच में जब मैच तीसरे गेम में पहुच गया, तब सिन्धु ने दबाव में ना आते हुए अपने गेम को बदला। नेट पर  अच्छा खेलने वाली सिन्धु ने लम्बी लम्बी रैलियां की और कोरियाई खिलाड़ी सुंग जी को थकाने की रणनीति पर काम करते हुए गेम और मैच को आसानी से जीत लिया। दूसरी तरफ भारत की युवा टेनिस टीम भी लिएंडर पेस के बिना 27 साल बाद मैदान में उतरी और उज्बेकिस्तान को आसानी से 4-1 से हराकर डेविस कप के वर्ल्ड ग्रुप प्ले ऑफ में जगह बना ली। भारतीय  फुटबॉल टीम ने भी लंबे समय बाद कंबोडिया और म्यांमार को उसके ही घर में हराया, जिसकी उम्मीद खुद भारतीय फुटबाल टीम के कोच स्टीफन कॉन्सटेनटाइन ने भी नहीं की थी।

म्यांमार के खिलाफ दबाव के अंतिम समयों में उदान्ता और जेजे के सहयोग से भारतीय कप्तान सुनील छेत्री का दर्शनीय मैच जिताऊ गोल भारतीय फुटबाल प्रेमियों को लम्बे समय तक याद रहेगा। महिला हॉकी टीम ने भी वर्ल्ड लीग राउंड-2 के फाइनल मुकाबले में चिली को पेनाल्टी शूटआउट में 3-1 से हराकार ख़िताब को अपने नाम किया। 1-1 से मुकाबला बराबर होने के बाद मैच पेनाल्टी शूट आउट में पहुंचा। दबाव के क्षणों में टीम की गोलकीपर सविता पुनिया ने दो शानदार बचाव कर टीम को खिताबी जीत दिला दी। सविता को उनके इस प्रदर्शन के लिए टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर भी चुना गया। टीम की कप्तान रानी रामपाल कहती हैं कि ओलिंपिक में हार कर आख़िरी स्थान पर आने से टीम में सब बहुत दुखी हुए। लेकिन हमने वहां ये ज़रूर सीखा कि दबाव को कैसे हैंडल करना है। टीम के नये डच कोच शोर्ड ने हमें मानसिक तौर से और मज़बूत करने की कोशिश की है। वो कहते रहते हैं कि विपक्षी टीम की रैंकिंग पर कोई ध्यान नहीं देना है। अब हमारी टीम आक्रामक हॉकी खेल रही है। साथ ही सपोर्ट स्टाफ़ का ज़ोर रहता है कि हम अपना धैर्य भी बनाये रखें। हमें अटैक करते वक्त काउंटर अटैक को भी माइंड में रखना पड़ता है। लेकिन हमारे पॉज़ीटिव प्वाइंट को छेड़ने की कोशिश नहीं की गई है।”

उधर भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने भी एशिया कप और वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग टूर्नामेंट जीतकर वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई कर लिया है।  क्वालीफाइंग टूर्नामेंट के फाइनल के अंतिम ओवर में हरमनप्रीत द्वारा लगाये गये छक्के पर गेंद जितनी दूर गयी थी, उतनी ही दूर अब भारतीय खेलों से दबाव भी जाता दिख रहा है। बस जरुरत है तो सरकार द्वारा बेहतर सहयोग, खेल प्रेमियों द्वारा और अधिक उत्साहवर्धन और खेल संघों को राजनीति से दूर करने की, खेलों के ‘अच्छे दिन’ खुद-ब-खुद आ जाएंगे।