नोटबंदी का काम कुछ बंद करना नहीं बल्कि काले को सफेद करना था?

मैं नोटबंदी हूं, मेरा जन्म 8 नवंबर 2016 को हुआ था। मेरे पैदा होने की बात बस घर के कुछ लोगों को ही पता थी। जब थोड़ा और वक़्त बीता तो बातें साफ होने लगीं। पता चला कि मेरे घर के अलावा भी कई लोग जानते थे कि मैं आने वाली हूँ, गुजरात वाले फूफा तो जश्न के लिए 5 दिन पहले ही पैसा जमा कर लिए थे, अब करते भी क्यों न उनको सब देखना भी तो था मेरे आने के बाद। मेरे होते ही सबसे ज्यादा पक्ष भी तो उन्हीं को लेना था, तब तो इतना बनता था कि कुछ जमा करा जाए।

 

गुजरात वाले फूफा के साथ-साथ नागपुर वाले मामा को थोड़ी तो भनक लग ही गई थी, अब वो कैसे पीछे रहते तो उन्होंने भी थोड़ा कुछ करोड़ रुपये जमाकर लिए। अब फूफा से पीछे तो नहीं रह सकते मामा, जैसे ही जन्म हुआ मेरा, उन्होंने तो फूफा का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया था तारीफ करने में। वो तारीफ करते-करते बोले 70 साल बाद कोई आया है तो जश्न तो होना चाहिए। उन्होंने जमा पैसों से मेरा खूब प्रचार किया और मेरे आने से क्या फायदा हुआ ये सबको बताते रहते थे। आखिर मुझे मानते ही इतना थे कि तारीफ करते हुए कुछ नहीं सुनते थे।

 

फूफा और मामा में एक ही कमी थी कि दोनों के पेट में कोई बात नहीं पचती थी और उनकी इसी आदत ने मेरे आने की भनक कई चचरे भाइयों और अपने चेलों को दे दी। अब वो भी लगे पार्टी के लिए पैसा जमा करने लेकिन मुझे बाद में समझ आया कि मेरे आने का फायददा बस इन्हीं लोगो को हुआ। इन्होंने फायदा लिया तो अपना नाम भी किया। अपने वो गाना तो सुना ही होगा कि जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। मेरे फूफा और मामा ने बताया कि जब तुम आई तुमने अमीरों को बहुत परेशान किया। बेचारे दिन भर लाइन में लगे रहते थे और गरीब घर में बैठ कर अंगूर खाता रहता था। तुमने तो आते ही इन अमीरों को उनकी औकात दिखा दी थी। लोगों को तो ये बताया गया कि मैं सब बुराइयों की कमर तोड़ दूंगी, मैं काले धन को इतना काला करूंगी कि जिसके पास काला धन होगा वो काल कोठरी में पहुंच जाएगा, मैं आतंकवादियों को बेबस कर दूंगी और नक्सलवादियों को तो भूखा ही मार दूंगी ।

 

लेकिन वक्त के साथ मेरे साथ भी कुछ मजाक ही होता चला गया पता चला कि जिनको मेरी वजह से हटाया गया था, उनकी नए रूप में घर वापसी करवा दी गई, मेरे होने के मायने मेरे घर वालों ने ही बदल दिए। इतना ही नहीं मेरे लक्ष्य भी पीछे छूट गए। अब मुझे लगने लगा कि मैं कुछ बंद करने नहीं बस बदलने आई थी ‘काले को सफेद में’।