हर पड़ोसी भारत और भूटान की तरह क्यों नहीं होते?

पड़ोसी कभी शांति से नहीं रह सकते. बिना टकराए तो कभी नहीं. जब तक पड़ोसी-पड़ोसी का झगड़ा सिर फोड़ने तक न गंभीर न हो जाए, तब तक कैसा पड़ोसी?

भारत-पाकिस्तान को ही ले लीजिए. कभी-कभी लगता है कि दोनों देशों के बीच झगड़ा ही शाश्वत है. सब कुछ हो सकता है, दोनों देश बिना लड़े-झगड़े नहीं रह सकते.

करगिल, कांधार, उरी, 1947, 1965 , 1971, 1999, 2002, 2008, 16-18, और 2019….ऐसे ही तारीखें बदलती जाएंगी, दुनिया बहुत आगे बढ़ जाएगी, फिर भी भारत-पाकिस्तान उलझना जारी रखेंगे. जारी रहना ही चाहिए, क्योंकि दोनों तरफ वोट हैं.

यहां पाकिस्तान के खिलाफ जहर उगलो तो वोट, वहां भारत के खिलाफ उगलो तो वोट. बस यही नियती है, दोनों तरफ वोट हैं, इंसान का पता नहीं.

पाकिस्तान के भीतर आतंकवाद इतना भीतर तक घुस गया है कि वह कश्मीर में आतंक फैलाना छोड़ नहीं सकता. हालिया घटनाओं पर नजर डालें. केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर पर एक फैसला लेती है. अनुच्छेद 370 में बदलाव किया जाता है, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया जाता है.

पाकिस्तान सरकार का रिएक्शन कुछ ऐसा होता है कि उनकी किडनी मांग ली गई हो. इतना हो हल्ला मचाते हैं, जितना अगर आंतवाद के लिए मचाए होते तो उनके यहां भी चंद्रयान भेजे जाने की तैयारियां हो रही होतीं.

कलह, खून, बम धमाके, शहादत, संघर्ष विराम का उल्लंघन और बमबारी.

70 सालों में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की यही उपलब्धि है.

शांति से दोनों नहीं रह सकते. आजाद कश्मीर के बहाने से पाकिस्तान की भारतीय जमीन में आतंकवाद को बढ़ावा देना ही कई बार लगता है कि पाकिस्तान की यही नियति है.

वहीं हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भूटान दौरा कितना चर्चित रहा. मोदी भूटान गए. उनका ऐसा भव्य स्वागत हुआ जैसा कि पुराने जमाने की कहानियों में मिलता है. लोग सड़कों पर उतर आएं. एक हाथ में तिरंगा, एक हाथ में भूटान का झंडा.

दोनों देशों के बीच का कार्यव्यवहार देखकर कोई तीसरा देश भी अनायास ही कह दे कि काश! ऐसा पड़ोसी हर किसी के पास हो. काश ऐसा पड़ोसी हर किसी के पास हो.

हर पड़ोसी, भूटान की तरह क्यों नहीं हो सकता?