किसान आंदोलन: अबकी जीतेंगे या फिर से ठगे ही जाएंगे?

किसान आंदोलन. (farmers protest) यह शब्द भारत में आम है. हर कुछ महीनों में उठता है. किसान सड़क पर उतरते हैं. लाठी खाते हैं, पानी की बौछार सहते हैं. आखिर में उन्हें ठगा जाता है. उनकी मांग कभी पूरी नहीं होती. न जाने क्यों सरकारें ऐसा कानून बनाती हैं, जो किसानों के हित में तो कभी ही नहीं लगता. एक बार फिर से किसान आंदोलन कर रहे हैं. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली घेरने आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि, सवाल यही है कि क्या इस बार किसानों की जीत होगी या उन्हें फिर से बेवकूफ बना दिया जाएगा?

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फेल क्यों होते हैं किसान आंदोलन?

भारत में सबसे ज्यादा नेतृत्वविहीन किसान ही हैं. उनका कोई अपना नेता नहीं है. अक्सर होने वाले किसान आंदोलन ज्यादातर विपक्षी पार्टियों के बलबूते किए जाते हैं. वही विपक्षी पार्टी सत्ता में आते ही किसानों पर लाठी चलवाने लगती है. किसान फिर उतरते हैं लेकिन अबकी दूसरी वाली विपक्षी पार्टी के साथ. मुंबई और महाराष्ट्र में साल 2018 और 2019 में हुए किसान आंदोलन ऐसे ही थे. वहां के किसानों ने बाद में शिकायत की कि उनके आंदोलन को रोक दिया गया लेकिन उनकी मांगें नहीं मानी गईं.

Farmers march towards delhi

लंबे समय से चल रही हैं किसान आंदोलन की तैयारियां

कृषि बिल 2020 के खिलाफ हो रहा है आंदोलन

दरअसल, ज्यादातर किसान कृषि बिल के ‘नुकसानों’ के बारे में समझ लेते हैं या उन्हें समझा दिया जाता है. बिल में क्या बदलाव चाहिए या उनकी क्या मांग होनी चाहिए इसको लेकर तय करने का काम कुछ नेता टाइप लोगों का होता है. दुर्भाग्य है कि अक्सर इसी नेता टाइप लोगों में से कई लोग किसी न किसी पार्टी का टिकट लेकर सेट हो जाते हैं और किसान वहीं का वहीं रह जाता है.

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किसान आंदोलन पंजाब का क्यों लग रहा है?

मौजूदा हालात ऐसे ही हैं. कृषि बिल में बदलावों पर किसान रोष में हैं. हालांकि, ज्यादातर मुखर आवाजें पंजाब से उठ रही हैं. बीजेपी जिन राज्यों में सत्ता में है, वहां पहले ही आंदोलन को दबा दिया गया है. फिर भी किसान यूनियनों ने भीड़ जुटाने की पूरी कोशिश की है. सरकार ने भी पूरे इंतजाम किए हैं कि किसानों को दिल्ली में घुसने ही न दिया जाए. इसके लिए कोरोना का भी हवाला दिया जा रहा है. वही कोरोना जो बिहार के चुनाव के समय कहीं चला गया था और अचानक जिन्न की तरह लौट आया है.

इस बार किसान जीतेंगे या नहीं?

Haryana Police ready to stop farmers

लंबे समय से चल रही हैं किसान आंदोलन की तैयारियां

दूसरी तरफ सत्ताधारी पक्ष का आईटी सेल है. जैसे-जैसे मामला गरम होगा, आईटी सेल काम करेगा. सत्ताधारी पक्ष के समर्थक किसानों को वामपंथी, कांग्रेसी
और न जाने क्या-क्या बताने लगेंगे. दिल्ली और गुड़गांव जैसे शहरों की आरामपसंद जनता कथित रूप से परेशान भी हो जाएगी. कुल मिलाकर सरकार पर दबाव बनने की बजाय किसानों पर ही दबाव बनेगा. ऐसे में आंदोलन जारी रखना और अपनी मांगें पूरी करवा लेना बहुत टेढ़ी खीर है. यह मुश्किल काम इसलिए भी है कि सरकार इस मुद्दे पर एक सख्त रवैया अपना रही है और उसने आंदोलनकारियों को पहले ही ‘विपक्ष की साजिश’ करार दिया है.