आजादी के 70 साल बाद भी यह भूख है बड़ी!

2017 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स का आंकड़ा इंटरनेशनल फ़ूड पालिसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पेश कर दिया है। पिछले साल की तुलना में भारत की स्थिति और भी भयंकर हो गई है। साल 2016 की रिपोर्ट में भारत को 97वां स्थान स्थान मिला था। तब भारत में इसको लेकर खूब हो हल्ला हो रहा था लेकिन 2017 के आंकड़े ने भारत को और शर्मसार किया है। 119 देशों के बीच हुए इस सर्वे में भारत को 100वां स्थान मिला है।

इसे नापने के चार मुख्य पैमाने हैं:  कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर। इन चारों पैमाने पर भारत विकास में पूरी तरह विफल हुआ है। भारत से अच्छा तो नेपाल (72) बांग्लादेश (98),म्यांमार (77) और श्रीलंका को (84)वां स्थान मिला है।

ध्यान  देने वाली बात ये है कि म्यांमार ,बांग्लादेश,नेपाल जैसे देशो ने पिछले साल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले साल नेपाल(72वें),म्यांमार (75वें),बांग्लादेश(90)वें स्थान पर थे। चीन तो इन देशों से बहुत आगे है, उसका स्थान 119 देशो में 29वां है। भारत की तुलना इस इंडेक्स में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से की जा रही है। साउथ एशियाई देशों में भारत सिर्फ पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ही आगे है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत के 21% बच्चे हाइट के हिसाब से कम वजन जैसे समस्या से ग्रसित हैं। इस साल मात्र 3 देश ही ऐसे हैं, जिनका आंकड़ा 20% से ज्यादा है,जिनमें श्रीलंका और साउथ सूडान प्रमुख हैं।

इस तरह के सर्वेक्षण की शुरुआत इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने की और वेल्ट हंगरलाइफ़ नामक एक जर्मन स्वयंसेवी संस्थान ने इसे सबसे पहले वर्ष 2006 में जारी किया था। वर्ष 2007 से इस अभियान में आयरलैंड का भी एक स्वयंसेवी संगठन शामिल हो गया।

बहरहाल, अब यह सवाल उठना लाजिमी हो गया है कि जब बांग्लादेश,नेपाल,म्यांमार जैसे देश अपने स्थान में सुधार कर सकते है तो भारत क्यों नहीं? क्या वहां भारत से ज्यादा पैसा कुपोषण, बाल विकास इत्यादि पर खर्च किया जाता है?

कितना खर्च हुआ?

2015 में कुपोषण कार्यक्रम के तहत 65 करोड़ कुपोषण पर खर्च किये गए, लेकिन पिछले साल प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के तहत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया था कि इस बार के बजट में कुपोषण कार्यक्रम के तहत कुपोषण से लड़ने के लिए 350 करोड़ रुपये मिले हैं।

वर्ल्ड बैंक ने भी 450 करोड़ रुपये इंटरनेशनल चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम के तहत भारत को दिए जो पिछले साल से 415 करोड़ ज्यादा है।मतलब की 2015 में वर्ल्ड बैंक ने 35 करोड़ रुपये दिए थे लेकिन 2016 के भयावह आंकड़े को देखकर इसमे अपने आवंटन में बढ़ोतरी तो की लेकिन सुधार न होकर कुपोषण और बढ़ गया।

गौरतलब है कि पैसे का आवंटन बढ़ा है लेकिन पैसे के आवंटन से कुपोषण के खिलाफ कुछ फायदा हुआ है? शिशु मृत्यु दर में सुधार आया है? सवाल का जवाब आपको वर्ल्ड हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट देखकर ही समझ आ जाएंगे।

पिछले साल देश मे खाद्य और कुपोषण के अंतर्गत चार स्थानों पर प्रयोगशाला भी खोली जानी थी लेकिन कहीं खुली? इसके बारे में आपने कहीं सुना? बस विकास का झुनझुना देश में बज रहा है, पैसे आवंटित हो रहे हैं लेकिन पैसे किधर जा रहे हैं कोई पता नहीं? बस बोलते रहिए कि विकास बोल रहा है।


यह लेख राजीव कुमार ने लिखा है।