इंटरव्यू: पढ़ें, कट रहे जंगलों पर क्या है पेड़ों का कहना

आज हम जिनकी बात करने जा रहे हैं, शायद कल हमारी आने वाली पीढ़ी उन्हें बस इंटरनेट पर ही देख पाएगी। जिनकी आज बात करने जा रहे हैं, वो इतने खास हैं कि पृथ्वी उनके बिना आपने आप को अधूरा मानती है। और उनके लिए अपनी पृथ्वी एक गाना गाती है ‘मैं रहूँ या ना रहूँ, तुम मुझ में कहीं बाकी रहना’। तो आप अब तक शायद समझ गए होंगे कि आज हम किस खास मेहमान से बात करने वाले हैं। जी हाँ, आज हमारे साथ हैं पेड़ जी, वैसे ये काटे तो काफी समय से जा रहे हैं लेकिन हम लोगों का ध्यान अब गया है इनके ऊपर। तो चलिए बिना वक़्त गंवाए शुरू करते हैं, सवाल-जवाब का सिलसिला।

फलाने– नमस्कार पेड़ जी, स्वागत है आपका।
पेड़– नमस्कार फलाने जी

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फलाने– आपका और विकास जी क्या संबंध है? क्यों हर कोई आपको उन्हीं के नाम पर काट दे रहा है?
पेड़– विकास जी बेचारे बड़े सीधे हैं, बस लोग अपना लालच पूरा करने के लिए इनका नाम लगा देते हैं। नहीं तो मैं जितना इनके नाम पर काटा गया हूँ, उतना काम हो जाता तो देश की तस्वीर कुछ और होती फलाने जी। बस कुछ लोगों के लालच को आप लोगों ने विकास का नाम दे दिया है क्योंकि अब आप भी तो बिके ही हुए हैं, कहाँ तक सच बता देंगे।

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फलाने– आपको क्या लगता है आपके कटने से किसका सबसे ज्यादा घाटा है?
पेड़- देखिए घाटा तो आपका ही है क्योंकि हम कट के खत्म हो जाएंगे और जो कटवा रहे हैं, वो झोला उठा कर चल देंगे तो अंत में फंसना आपको ही है। इस पर एक गाना याद रहा है, ‘इसमे तेरा घाटा मेरा कुछ नहीं जाता’।

फलाने– अब आपके कटने का लोग विरोध करने लगे हैं, इस पर क्या बोलना चाहते है आप?
पेड़– देखिये आरे के पेड़ काटने पर जितना चिल्लाए, अगर उतना पहले चिल्ला लेते तो शायद 5 लाख पेड़ और बच जाते लेकिन जब तक बात अपने पर नहीं आ जाती आप लोग बोलते कहाँ हैं।

फलाने– सरकार बोलती है कि वो पेड़ लगा देती है, जितने काटती है उस से भी ज्यादा, तो इसमें तो गलती नहीं दिखती सरकार की?
पेड़– वैसे आप लोगों को तो कहीं गलती नहीं दिखती सरकार की इसमें क्या दिखेगी। ये छोड़िये आपके सवाल पर आते हैं कि सरकार जो पेड़ लगा रही है, क्या वो उतने ही बड़े हैं, जितने बड़े उसने काटे हैं। इस सवाल का जवाब दे दीजिए मैं चुप रहूंगा कभी नहीं बोलूंगा वादा रहा और अगर इसका जवाब आपके पास नहीं है तो दुबारा ऐसा सवाल किसी से मत पूछना।

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फलाने– सरकार का कहना है वो आपको काटकर मेट्रो बना रही है, जिससे पॉल्युशन कम होगा, इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
पेड़– इसका जवाब भी सरकार के पास है और आपके पास भी, दिल्ली में मेट्रो है न तो इसका मतलब दिल्ली तो पॉल्युशन फ्री हो गई होगी न, क्योंकि दिल्ली जितनी मेट्रो तो आपके पास अभी भी नहीं है, इसका जवाब आप खुद से पूछना और दूसरी बात मैं ऑक्सीजन पैदा करता हूँ क्या आपकी मेट्रो भी ऑक्सीजन पैदा करेगी क्या? इसका जवाब आपको दो कक्षा का विद्यार्थी भी बता देंगे चाहे तो आप पूछ लेना।

फलाने– आपको क्या लगता है कि आपके जाने के बाद दुनिया आपको याद करेगी?
पेड़– मेरे जाने के बाद क्या आपकी ये दुनियां बचेगी? आप सांस कहा से लेंगे महाराज। मेरे अलावा कोई और सोर्स नहीं है, आपके पास, नहीं है न तो ये सोचिए मैं न रहा तो आप कैसे रहेंगे। सोचना आपको है, मुझे क्या करना है। कल का कटता, आज कट जाऊं।

फलाने– आप बहुत गुस्से में लग रहे हैं?
पेड़– मैं कोई गुस्से में नहीं हूँ। बस आपको सच बता रहा हूँ। संभल जाओ नहीं तो मेरे जाते ही ये पृथ्वी आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी। बहुत प्यार करती है मुझसे और वो मेरा बदला लेगी आप सबसे।

फलाने– पेड़ जी कई बार आपको काटना बहुत जरूरी हो जाता है, वो तो करना पड़ेगा न?
पेड़– ये सब बहाने हैं फलाने जी और अगर काटना जरूरी है तो भुगतना भी जरूरी है। अगर आपकी इच्छा सकती हो तो आप लोग कहीं और काम कर सकते हैं। आप क्यों अपने कामों के लिए मेरे पूरे परिवार(जंगल) की बलि ले लेते हैं। क्या आपको मेट्रो के लिए कोई और जगह नहीं मिली थी? जब आप मुझे नहीं छोड़ रहे तो पृथ्वी आपको क्यों छोड़ देगी?

फलाने– आप क्या बोलना चाहेंगे लोगों से?
पेड़– बस इतना कहना है अपनी बारी का इंतजार मत कीजिए, बचा लीजिए मुझे अपने लिए ही सही।

तो देखा आपने कितने गुस्से में और कितने दुखी हैं पेड़ जी। आप भी इनकी बात समझिए कि अगर यही नहीं रहे तो भविष्य क्या रहेगा। अगर भविष्य ठीक करना है तो पहले इन्हें बचा लीजिए। नहीं तो चलाते रहना मेट्रो।