कहानी: तीन दोस्त, सियासी गिद्ध और मौत

मोहित,सोनू और इरफान की दोस्ती के चर्चे पूरे कस्बे में मशहूर थे। आखिर कौन भूल सकता था, जब कल्लू ने इरफान की बहन को छेड़ने वाले को बीच बाजार में नंगा कर दिया था। दरअसल, वो सिर्फ इरफान की ही बहन नही थी बल्कि वो मोहित और सोनू को भी हर रक्षाबंधन पर उनकी कलाई पर राखी बांधने वाली और भैयादूज पर गोला खिलाने वाली बहन थी।

रोज शाम को तीनों पप्पू चाय वाले के यहाँ इक्कट्ठा होते थे और अपनी भविष्यनुमां बगिया को प्यार से सींचते थे। तीनो के बीच हिन्दू-मुस्लिम जैसी भी कोई बात नहीं थी। रात का खाना मोहित, सोनू के यहॉ तो दिन खाना इरफान के घर खाया जाता था। तीनों अपने धर्मो में व्याप्त कुरीतियों और अच्छाइयों को लेकर एक दूसरे से जमकर बहस करते थे। कोई कैसे भूल सकता है जब तीन तलाक पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोनू ने इरफान की फिरकी ले ली थी और इससे नाराज इरफान, सोनू से सुबह-सुबह खूब लड़ा भी था लेकिन उसका गुस्सा ज्यादा देर तक नहीं टिका था और शाम को गांधी मैदान में बैट-बॉल लेकर तीनों दूसरी टीम से भिड़ने पहुँच गए थे। नगर में निकाय चुनाव आने वाले वांले थे पर इन तीनो का इससे क्या सरोकार?

यूं तो मोहित के ताऊ जी कस्बे के चैयरमैन थे फिर भी राजनीति से थोड़ा दूरी बनाये रखने वाली वो तिकड़ी तो अपनी ही मस्ती में मग्न थी । धीरे-धीरे कस्बे की फिजाओं में चुनावी सुगन्ध आने लगी थी और इस बार पुराने चैयरमेन को हटाने के लिए माहौल सा तैयार होने लगा था इसको लेकर कस्बे में बैठकों का दौर चलने लगा। जहाँ एक तबका अभी भी मोहित के ताऊ को एक ओर मौका देने की मांग में जुटा था। वहीं दूसरा तबका निर्वतमान चैयरमैन महेंद्र के सामने अपना दूसरा दावेदार उतारने की तैयारी करने लगा था।

आखिरकार नामांकन पत्र दाखिल करने का वक्त आ गया और इस मुस्लिम बहुल कस्बे से निर्वतमान चैयरमैन महेंद्र के सामने मुस्लिम वोट को साधने के उद्देश्य से इरफान के अब्बू रफीक को उतारा गया। हालांकि, इरफान के अब्बू अंत तक चुनाव लड़ने से मना करते रहे लेकिन राजनीति में अपने बाल सफेद करने वाले यहां अपना शातिर दिमाग चला गए और उन्होंने रफीक की मान मनौव्वल करके उन्हें चुनाव के लिए तैयार किया और उनका नामांकन दाखिल करवा दिया। नामांकन के अगले दिन से ही कस्बे में चुनाव प्रचार का सिलसिला शुरू हो गया था।

खुद पिता के ही चुनावी मैदान में उतरने की वजह से इरफान भी अब सक्रिय हो गया था। उसने अपने सैमसंग के टच स्क्रीन वाले फोन को उठाया और बारी-बारी से कई लोगों को फोन करके अपने पिता का समर्थन करने की बात कही, मोहित और सोनू को क्या फोन करूं? उन्हें तो साथ लेकर अब बस पोस्टर वोस्टर छपवाने देकर आना है, आज शाम को पप्पू की दुकान पर बोल दूंगा उन्हें, वो मन ही मन में बुदबुदाया था। शाम के 6 बजने को थे, आसमान में उमड़ते काले बादलों और तेज हवाओं को अपने भीतर समेटे मौसम आज कुछ अलग ही तेवर दिखा रहा था। इरफान ने छतरी उठाई और हर रोज की तरह पप्पू चाय वाले के खोखे पर जा पहुचाँ पर ये क्या ……………

आज वहां ना तो मोहित था और ना सोनू, उसने फटाफट फोन निकाला और अपनी उंगलियों को फोन में दिख रहे सोनू के नंबर पर फिराने लगा लेकिन उधर से वापस पलटकर आयी आवाज “दिस नंबर कांट बी रीच्ड राइट नाउ” ने उसका मूड खराब कर दिया, परेशान होकर उसने मोहित को नंबर मिलाया तो तीसरी घण्टी में फोन उठाकर मोहित ने बताया कि आज वो नही आ सकता। कारण पूछने पर उसने बताया कि वो सोनू के साथ है और ताऊ जी के पोस्टर छपवाने शहर आया है, बस यही सुनकर इरफान ने फोन काट दिया था।

सचमुच आज उसे कुछ अजीब सा लग रहा था और उसको लगने लगा था कि मोहित और सोनू से वो कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहा था । उसकी बची-खुची उम्मीदों को भी झटका तब लगा जब ताऊ जी के मैदान में होने का हवाला देकर मोहित ने इरफान के पिता का समर्थन करने से साफ-साफ मना कर दिया था । अगले दिन जब मोहित ने फोन करके इरफान को अपने मिलने के अड्डे यानी पप्पू चाय वांले के यहां बुलाया तो उसने आने से साफ मना कर दिया, धीरे-धीरे उन्होंने आपस मे फोन करना भी बंद कर लिया था।

चुनाव की तारीख नजदीक थी इसलिए सोनू ने मोहित के साथ मिलकर उसके ताऊ जी का प्रचार कार्य सम्भाल लिया। वहीं अपने समुदाय से ही युवाओं की एक नई फौज तैयार करके इरफान भी अपने पिता के पक्ष में उतर चुका था। जिस दोस्ती की लोग मिसालें देते थे, एक अकेले चुनाव ने उस दोस्ती के बीच ऐसी खाईं पैदा कर दी थी की अब वो एक दूसरे की तरफ देखना भी पसन्द नही करते थे। जो दोस्त कभी एक-दूसरे के परिवार की तारीफ करने से नही थकते थे, आज वो उन्हीं परिवारों में कमियां तलाशकर उन्हें राजनीतिक रूप में भुनाने की जुगत भिड़ा रहे थे । सोशल मीडिया पर भी दोनों तरफ से प्रोपेगैंडा ( झूठ को सच मे बदलने की एक निंजा टेक्निक) का खेल खेला जा रहे था पर कौन जानता था ये खेल इतना बड़ा हो जाएगा की किसी की जान पर बन आएगी हुआ भी यही …

यह कहानी मानव त्यागी ने लिखी है। मानव से फेसबुक पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।