सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये

सलीम सरमद की नज़्म यात्राएँ…

अब वो पगडंडियाँ, पहाड़, बहते धारे नहीं रहे जिनपर चलकर, जिनको पार करके यात्राएँ की जाएँ
बाहर छोटे से चबूतरे पर पेड़ की छांव में लाल रंग से पुते हुए पत्थर के देवता विराजमान हों, वो गांव नहीं रहे

एक कुँआ जहाँ पानी भरती पनिहारिनें ओक में पानी उढेलने से पहले शर्त रखें
ऐ परदेसी मेरे अंगों की पहेली बुझाओ न, कोई नशीली कविता सुनाओ न, अब नहीं हैं

वो ज़हरीला पोखर भी नहीं है जहाँ कोई यक्ष पूछे, हे युधिष्ठिर जीव का धर्म क्या है ?
जीव का धर्म, नहीं है कोई एक धर्म, जीव का धर्म प्रतिक्षण बदलता रहता है

तुम यात्रा क्यों करोगे जब रास्ते में किसी भटकते हुए श्रमण से न मिलो
सब राहों के अन्वेषी बचे-खुचे जंगलों के साथ ही कट गये,

तुम्हारे पास नहीं है अपना राजगृह, यशोधरा, राहुल भी नहीं हैं जिनके लिए खोजना हो तुम्हें कुछ प्रश्नों के उत्तर
धरती को जीतने की लालसा भी नहीं तुममें, तुम चंगेज़ या सिकंदर नहीं हो
अपने वतन से हिजरत क्यों करोगे तुम, तुम पैग़म्बर भी नहीं हो
अब नहीं हैं भटियारनें और न उनकी सरायें जहाँ तुम रात्रि में ठहर सको, अपनी थकन बांट सको

अब नहीं हैं प्रणययार्थी, न उनकी गणिकाएं, वो गदिराए बदन भी नहीं हैं जिनपर लिख सको कामसूत्र जैसा ग्रंथ
तुम ज्ञान के लिए यात्राएँ क्यों करोगे जब तुम्हारे हाथ में किताबें हैं जिनमें लिखे हैं यात्राओं के विवरण

लेकिन इन किताबों को शरद ऋतु आने वाली है, तो अच्छे से पढ़कर आग में झोंक देना और अपने हाथ ताप लेना

-सलीम सरमद

ख़ुदकुशी…भवेश दिलशाद (शाद) की नज़्म

कवि का परिचय

सलीम सरमद भोपाल में रहते हैं और बहुत चाव से बच्चों को विज्ञान पढ़ाते हैं… फितरत से आवारा बंजारा जैसे सलीम जंगल में भी जाएं तो किताबें साथ ले जाते हैं और कहते हैं बस इसी जद्दोजहद में हूँ कि एक दिन न किताबों से मुक्ति मिल जाये.. इनकी ग़ज़लें और नज़्में ध्यान से सुनी पढ़ी जाती हैं..


(सलीम सरमद की फाइल फोटो)

Painting By life is a journey Painting by Ateeb Riaz