कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है: गोपालदास नीरज

4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में जन्में गोपाल दास सक्सेना ‘नीरज’ हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकारों में से एक हैं। नीरज ने काव्य की लगभग हर विधा पर कलम चलाई है। जीवन के 93 वर्ष व्यतीत कर चुके नीरज का बचपन संघर्षों के साए में बीता है। मजह 6 साल की उम्र में उनके सर से पिता का साया उठ गया था, लेकिन अपनी जिजीविषा और प्रतिभा के बदौलत नीरज नें वह मुकाम हासिल किया जहां पहुंचने का सपना हर कोई देखता है। नीरज ने बॉलीवुड में अनेक लोकप्रिय गीत लिखे। उन्हें ‘काल का पहिया घूमे रे भइया’, ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ और ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ जैसे गीत लिखने के लिए तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा उन्हें 1991 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री तथा 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा गया है।

कविताई में आज आपके लिए नीरज की लिखी एक लोकप्रिय कविता-

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

साभारः कविता कोश