अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जा, निवेश बचाने के लिए दुनिया मौन!

तालिबान. एक आतंकी संगठन. दो दशक बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया है. अभी तक अमेरिका के दम पर टिका यह देश अब घुटने टेक चुका है. ख़बर है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने देश छोड़ दिया है. या यूं कहें कि फरार हो गए हैं. अमेरिका समेत कई देशों ने अपने दूतावास खाली  कर दिए हैं. अफगानिस्तान की आम जनता, खासकर महिलाओं में तालिबानी शासन को लेकर भय का माहौल है. इस बीच वैश्विक समुदाय चुप है. अमेरिका ने अपना पल्ला झाड़ लिया है, तो बाकी के देश भी अपने निवेश या अन्य वजहों से चुप हैं.

जो बाइडेन के स्टैंड ने खड़ा किया संकट

लंबे समय से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में मौजूद थी. यही एक बड़ा कारण था कि तालिबान सिर नहीं उठा पा  रहा था. लेकिन अमेरिका में सत्ता बदलते ही सब बदल गया. जो बाइडेन को लगता है कि उनके देश को बाकी दुनिया में उलझने की बजाय अपने देश पर ध्यान देना चाहिए. उनका यह स्टैंड अमेरिका के अभी तक के स्टैंड से काफी अलग जा रहा है. वियतनाम युद्ध के समय अमेरिकी जनता अपने शासकों के इसके विपरीत स्टैंड से परेशान रहती थी. क्योंकि उस समय अमेरिका हर जगह टांग अड़ाने पहुंचता था. अब जो बाइडेन ने यही  स्टैंड बदला है, तो ये विश्व के लिए एक बड़ी समस्या बनता दिख रहा है.

लोकल डिब्बा के YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें.

क्रूरता की परिभाषा रहा है तालिबान

तालिबान का भूतकाल काफ़ी निर्मम, क्रूर और बेहद घिनौना रहा है. महिलाओं के प्रति तालिबान का रवैया. आम जनता के प्रति क्रूरता. विकास योजनाओं के खिलाफ़ विध्वंसकारी नीतियां ही तालिबान की पहचान रही हैं. बीते दो दशकों में अमेरिका, भारत और रूस समेत तमाम देशों ने अफगानिस्तान में अरबों का निवेश किया है. जो बाइडेन के स्टैंड के कारण अमेरिका ने अपने इस निवेश को अधर में छोड़ दिया है. भारत भी अपने बड़े और छोटे निवेशों की सुरक्षा को लेकर आशंकित है.

खतरें में हैं भारत के निवेश

भारत ने अफगानिस्तान की संसद बनाई है. कई सारे डैम बनाए हैं. ऐसे में अगर तालिबानी शासन इन योजनाओं को नष्ट कर देता है, तो भारत का बड़ा नुकसान होगा. यही कारण है कि भारत जैसे तमाम देश खुलकर तालिबान का विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं. तालिबानी कमांडरों से परदे के पीछे मुलाकात की खबरें भी आती रही हैं. कहा जा रहा है कि तमाम देशों की सरकारें तालिबान को इस बात के लिए राज़ी करने में लगी हैं कि वो शासन करे, लेकिन बड़े प्रोजेक्ट्स और निवेशों को नुकसान ना पहुंचाए.

पढ़ें: भारत के लिए शांति, पाकिस्तान के लिए परमाणु बम है प्राथमिकता

आखिर लोगों का क्या होगा?

हालांकि, इससे सिर्फ़ निवेश और पैसा बच सकता है लोग नहीं. तालिबान, लोकतंत्र जैसी चीज़ नहीं मानता. धीरे-धीरे ही सही अफगानिस्तान में सामान्य हो रहे हालात अब फिर से गर्त में जाने को तैयार हैं. महिलाओं और युवाओं का भविष्य अंधकार में है और राष्ट्रपति समेत अमेरिका के भाग खड़े होने से, अफगानी लोग लाचार हो गए हैं. उनके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा है. दुखद ये है कि तमाम बड़े और शक्तिशाली देश, अपने निवेश को देखते हुए चुप हैं या फिर वेट ऐंड वॉच की स्थिति बनाए हुए हैं.