स्टीफन हॉकिंग: जिंदगी ने ‘बोनस’ दिया तो वैज्ञानिक बन गए

ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाले हम न जाने कितने व्यक्तियों के बारे में जानते होंगे। तार्किक कसौटियों पर अपनी मान्यताओं को कसने वाले लोगों का व्यवहारिक जीवन पूर्णतः नास्तिकता की अनुपालना में सफल है, इस बात का दावा वह खुद भी नहीं करते लेकिन इसी दुनिया में कोई था, जिसने यह दावा किया था कि ईश्वर नहीं है और उसने अपने 76 साल के जीवनकाल के पग-पग पर इसे प्रमाणित किया कि जो कुछ भी है सब विज्ञान है। जो कुछ भी होगा सब आपसे होगा। जो कुछ भी हैं सब आप हैं, कोई भाग्य नहीं है। कोई आश्रय-शक्ति नहीं है। जिंदगी चाहे जितनी भी कठिन हो, उसे आसान बनाने के लिए आप ही कुछ कर सकते हैं।

ये किसी प्रेरक फिल्म, उपन्यास या कहानी का कोई पात्र नहीं है बल्कि, ये विज्ञान के आधुनिक युग का वो महर्षि है, जिसने अपनी अपंगता को रौंदकर ब्रह्माण्ड के ऐसे-ऐसे रहस्यों को भेद डाला जो सदियों से इंसानी सभ्यता के लिए किसी जादू या किसी दैवीय रचना से कम नहीं लगते थे। हम बात कर रहे हैं आज के दिन 76 साल की उम्र में सजीव शरीर से प्रयाण कर जाने वाले सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग्स की।

मोटर न्यूरॉन ने दिया झटका

स्टीफन हॉकिंग्स तब 21 साल के थे जब एक दिन अपने घर की सीढ़ियों से उतरते हुए अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। सामान्य शारीरिक कमजोरी का अनुमान लगाते हुए उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने उनकी सेहत को लेकर जो सच्चाई बताई वह किसी भी सामान्य आदमी को तोड़कर रखने के लिए पर्याप्त थी। 21 साल के स्टीफन मोटर न्यूरॉन नाम की लाइलाज बीमारी के शिकार हो चुके थे। एक ऐसी बीमारी जिसमें इंसान को हर दिन थोड़ा-थोड़ा मरना होता है। एक बीमारी जिसमें इंसान मानसिक तौर पर तो ठीक रहता है लेकिन उसके शरीर का हर अंग धीरे-धीरे मरना शुरू कर देता है और एक दिन जीवन की आखिरी डोर उसकी सांस की नली भी साथ छोड़ देती है और इंसान की मृत्यु हो जाती है।

डॉक्टरों ने दिया था दो साल का समय

स्टीफन को तब डॉक्टरों ने दो साल का समय दिया था। उनका कहना था कि इससे ज्यादा इनके पास उम्र नहीं है लेकिन वह तो स्टीफन हॉकिंग थे, जिन्होंने जीने की जिद ठान ली थी। उन्हें अभी बहुत से काम करने थे। उन्हें अभी सृष्टि के तमाम ज्ञात-अज्ञात रहस्यों के उद्घाटन पर अपने हस्ताक्षर करने थे। उन्हें मानवीय जीवन की क्षमताओं और उसकी शक्ति की सत्ता का प्रमाण पत्र भी तो बनना था।

..तब जिंदगी को बोनस मानने लगे स्टीफन

डॉक्टरों द्वारा 23 साल की उम्र तक जीने की भविष्यवाणी के बाद भी हॉकिंग की चिंता ये थी कि अगर ऐसा होता है तो वे अपनी पीएचडी कैसे पूरा करेंगे। धीरे-धीरे उनके अंगों ने उनका साथ छोड़ना शुरू किया और वह बैसाखी पर आते गए। इस बीच शोधकार्य और अध्ययन अबाध रूप से चलता रहा। जिंदगी रुकी नहीं तो उसकी सीमा अपने आप बढ़ने लगी। इस बढ़ी हुई सीमा को स्टीफन बोनस मानते थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ’21 की उम्र में मेरी सारी उम्मीदें शून्य हो गईं थीं और उसके बाद जो पाया वह बोनस है।’ शारीरिक अक्षमता के बावजूद वह तमाम सेमिनार, यात्राओं आदि में भाग लेते रहे और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में वो कर दिखाया जिसनें विज्ञान को अपने विस्तार के लिए कई नए आयाम मिले। हॉकिग्स ने बिग बैंग थ्योरी और ब्लैक होल जैसी खगोलीय घटनाओं पर अपने शोध और विचारों से विज्ञान का कोष समृद्ध किया।

ब्लैक होल्स के रहस्य से उठाया परदा

हॉकिंग्स महान वैज्ञानिक गैलीलियो की मौत के ठीक तीन सौ साल बाद पैदा हुए थे। गैलीलियो और हॉकिंग्स सामान्य प्रचलित धारणाओं को सत्य के तार्किक धार से काटने की हिम्मत रखने वालों में गिने जाते हैं। अपनी इसी प्रवृत्ति से प्रेरित होकर स्टीफन ने यह दावा किया था कि यह दुनिया किसी ईश्वर ने नहीं बनाई बल्कि यह विज्ञान के तमाम नियमों और प्रक्रियाओं का एक परिणाम है। उन्होंने ब्लैक होल्स से जुड़े तमाम रहस्यों से पर्दा उठाने की दिशा में काफी काम किया है। ब्लैक होल्स के बारे में कहा जाता है कि उसका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि उसकी जद में आया प्रकाश तक उससे बाहर नहीं निकल सकता।

हॉकिंग्स ने ब्लैक होल्स के आस-पास निकलने वाली रेडिएशन्स की सच्चाई को दुनिया के सामने रखा जिसमें उन्होंने बताया कि ब्लैक होल्स के उच्च गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से जो भी चीजें उसकी जद में आती हैं वह पहले तो उसका चक्कर लगाती हैं। इसकी वजह से होने वाले घर्षण की वजह से रेडिएशन की घटना होती है। यह रेडिएशन कोई ऐसा प्रकाश नहीं होता जो ब्लैक होल्स के अंदर से बाहर निकल रहा हो। ब्लैक होल से निकलने वाले इस रेडिएशन को हॉकिंग रेडिएशन कहा जाता है।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय की साइट पर हॉकिंग की थीसिस

हॉकिंग की पीएचडी थीसिस को कैंब्रिज विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर डाल दी गई है। इसे वेबसाइट पर डालने के वक्त से अब तक तकरीबन बीस लाख बार इसे देखा जा चुका है। साल 2014 में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बनी थी। इस फिल्म का नाम द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग था जिसमें ऐक्टर एडी रेडमैन ने उनका किरदार निभाया था। स्टीफन मे कई किताबें भी लिखी हैं। 1988 में आई उनकी किताब ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम की एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिकी हैं। साल 2014 में विज्ञान की दुनिया का यह अद्भुत पुरुष सोशल मीडिया के फेसबुक प्लेटफॉर्म पर जब आया तो अपने पहले ही संबोधन में उसने दुनिया को जिज्ञासु बनने की सलाह दी थी। उन्हें पता है कि जिज्ञासा ही नए अविष्कारों का बीज है। उन्होंने कहा था कि समय और अंतरिक्ष हमेशा के लिए रहस्य बने रह सकते हैं लेकिन इससे उनकी कोशिशें नहीं रुक सकतीं।

सहपाठी बुलाते थे आइंसटाइन

आज हाॉकिंग्स हमारे बीच नहीं हैं। आज उनकी पहली पुण्यतिथि है। आज अल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्मदिन भी है। बचपन में हॉकिंग्स को उनके सहपाठी आइंस्टाइन कहकर बुलाते थे। जैसे हम अपनी कक्षा के विज्ञान में सबसे तेज सहपाठी को न्यूटन बुलाते थे। आइंस्टाइन कहलाने पर भी हॉकिंग्स ने आइन्स्टाइन बनने की कोशिश नहीं की इसलिए हॉकिंग्स हो गए। विज्ञान-जगत के एक युगपुरुष जिनके नाम से साइंस अपना एक कालखंड निश्चित करेगा। स्टीफन हॉकिंग समकालीन दुनिया के एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे जिनके बारे में गैर-विज्ञान विद्यार्थी को भी कुछ न कुछ जानकारी है। ऐसे व्यक्ति के युग में होना अपने आप में एक सम्मान है। ब्रह्माण्ड के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाले इस महात्मा के लिए दुनिया का हर ‘जिज्ञासु’ और जुनूनी विद्यार्थी वर्ग सदैव कृतज्ञ और नतशीश रहेगा।