घुटता है दम-दम, घुटता है दम-दम, घुटता है दम-दम दिल्ली में
हमने विकास के लिए जिंदा शहरों को कब्रिस्तान में बदलने में की पूरी तैयारी कर ली है.
जहां बातें होंगी हिंदी इस्टाइल में
हमने विकास के लिए जिंदा शहरों को कब्रिस्तान में बदलने में की पूरी तैयारी कर ली है.
भारत में किसी की भी सरकार आए……गांधी को पूजना उसकी मजबूरी है, लेकिन उनके सिद्धातों को अपनाना नहीं. कोई अपना भी नहीं सकता. गांधी आदर्श स्थिति हैं.
वंदे मातरम की रचना करते समय बंकिम चंद्र चटोपध्याय ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनकी इस रचना को देशभक्ति के सर्टिफिकेट के तौर पर उपयोग किया जाएगा
जिस देश में मौत का उत्सव मनाया जाता हो, जहां एनकाउंटर को गर्व के साथ उपलब्धि के रूप में विधानसभा में गिनाया जा रहा हो...
‘हमें गालियां दो, आलोचना करो लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम को खेल देखने स्टेडियम में आओ’
सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है। जिसमें एक लगभग बूढ़ा हो चूका व्यक्ति एक महिला को साइकिल पर ले जा रहा है तस्वीर देखकर कुछ लोग समझ रहे हैं कि महिला जिंदा है, व्यक्ति उसे इलाज के लिए ले जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि व्यक्ति साइकिल पर उस महिला की लाश लेकर जा रहा है।
पाकिस्तानी राजनीति का इतिहास उठा कर देखें तो सिर्फ गिने चुने नाम आएंगे जो जननेता के रूप में उठकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हो. और ये तय के अब उस इतिहास में इमरान खान का नाम सबसे ऊपर लिखा जाएगा
धोनी से पहले विश्व क्रिकेट के बहुत बड़े बड़े फिनिशर भी हुए, जिनमें लांस क्लूजनर, माइकल बेवन जैसे दिग्गज नाम शामिल हैं, लेकिन उस जगह के लिए महेंद्र सिंह धोनी ने जो झंडे गाड़े हैं उसकी सिर्फ मिसाल ही दी जा सकती है
विभाजन और विभाजन से होने वाले दंगे का मंटो पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था. इस त्रासदी को मंटो के लिए सह पाना बहुत कठिन था. इसी कारण दंगो के दुष्प्रभाव का जितना मार्मिक चित्रण मंटो की कहानियों में मिलता है, उसे कहीं और ढूंढ पाना बहुत कठिन है
लोकतंत्र में विरोध होना जायज है। जब-तक जनता अपनी स्वस्थ मांगों को लेकर सरकार के सामने विरोध नहीं करेगी तब तक वह लोकतंत्र लगभग अधूरा रहेगा।और जब यह विरोध ख़त्म हो जाएगा तो वह लोकतंत्र तानाशाही में परिवर्तित होने लगेगी,लेकिन प्रश्न यह है कि विरोध का स्वरुप कैसा हो??