…जब एक इंजिनियरिंग स्टूडेंट 3 रुपये के लिए क्रिकेटर बन गया

आम भारतीय माँ-बाप जैसे ही अजीत वाडेकर के माँ-बाप भी अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे। बेटे को लेकर बुने जा रहे अपने इन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए पापा लक्ष्मण वाडेकर ने उनको पढ़ने के लिए लंदन के प्रतिष्ठित एलिफिंस्टन कॉलेज भेजा। बच्चा बाप की इच्छा के मुताबिक, पढ़ भी रहा था कि एक दिन वहां बस से जाते समय उनकी मुलाकात तब के उनके कॉलेज सीनियर और बाद में भारत के लिए  लेग स्पिनर के तौर पर सेवा देने वाले बालू गुप्ते से होती है।

बालू गुप्ते उनसे कहते हैं कि हमारे कॉलेज की क्रिकेट टीम के लिए बारहवें खिलाड़ी के तौर पर तुम खेलोगे। प्रति मैच 3 ₹ मिलेगा। एक कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों के लिए आय के ऐसे अतिरिक्त स्रोत मन मांगी मुराद के पूरे जैसे होते है, वाडेकर झट से हामी भर देते हैं। इस एक घटना ने भारत से एक इंजीनियर छीनकर उसकी क्रिकेट टीम के लिए एक अद्भुत नेतृत्व क्षमता का कप्तान सौंप दिया।

वेस्टइंडीज को दिन में दिखाए तारे

बाएं हाथ के बल्लेबाज और स्लिप के मानीखेज़ फील्डर अजीत वाडेकर को साल 1971 में भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया। टीम अपने विदेशी दौरे में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड खेलने गई। मग़र इस बार परिणाम पिछले विदेशी दौरे जैसे दांत खट्टे करने वाले नहीं बल्कि घी के दिये जलाने वाले साबित हुए। क्योंकि इन विदेशी दौरों में भारतीय टीम ने शानदार जीत हासिल की।

क्रमशः इन दौरों में जीत दर्ज के बाद भारतीय क्रिकेट टीम ने अपनी घरेलू सरजमीं में भी एक जीत दर्ज की। तीन लगातार सीरीज जीतने वाले अजीत वाडेकर तत्कालीन दौर के पहले भारतीय क्रिकेट कप्तान बन गए। और इस तरह अजीत वाडेकर ने एक नया इतिहास रच दिया था भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में। एक कप्तान के तौर पर अजीत वाडेकर बेहद बेजोड़ थे, उनमें अपनी खिलाड़ियों की क्षमता पहचान करने के अतिरिक्त उनकी क्षमता निर्माण का अद्भुत हुनर था, साथ ही वो विरोधी खेमे की योजना अनुरूप अपनी टीम की भी योजना बनाते थे, वो भी उस दौर में जबकि आज जैसी तकनीकी सुविधाएं न थीं।

लकी क्रिकेटर

अजीत वाडेकर ने वर्ष 1966 से वर्ष 1974 के बीच भारतीय क्रिकेट टीम के लिए अपनी सेवाएं दीं। यही नहीं अजीत वाडेकर अपनी घरेलू मुम्बई क्रिकेट टीम के उस गौरवशाली रणजी अश्वमेध अभियान का भी हिस्सा थे जिसने लगातार 15 विजयश्री अर्जित की थीं। अजीत वाडेकर के ऐसे सुनहरे भाग्य को देखकर ही उन्हें ‘लकी क्रिकेटर’ भी कहा जाता था।

भारतीय टीम ने जब वर्ष 1974 में अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट जगत में अपना पहला एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला तो उस मैच में कप्तान बनने का गौरव भी अजीत वाडेकर को हासिल हुआ। अजीत वाडेकर उन चंद क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक है जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट, एकदिवसीय क्रिकेट के कप्तान के तौर के अतिरिक्त टीम के कोच, मैनेजर और चयन समिति में भी अपनी सेवाएं दी है।