मोदी-ममता मिलते रहेंगे, आप अपने रिश्ते बचा लीजिए प्लीज!

21वीं सदी में हर व्यक्ति राजनीतिक हो गया है। जो नहीं भी है, उसे वॉट्सऐप बना दे रहा है। चाचा, मामा, फूफा इत्यादि लोगों को मिलाकर ‘हैप्पी फैमिली’ के नाम पर बनाए गए वही ग्रुप बच पा रहे हैं, जिनमें सब एक ही पार्टी के वोटर हैं। थोड़ा सा भी अलग विचार होने पर फलाना के लड़के या लड़की को ढिमकाना टैग देकर या तो ग्रुप से बाहर कर दिया जा रहा है या फिर वह ग्रुप निष्क्रिय हो जा रहा है।

बात सिर्फ वॉट्सऐप या किसी सोशल मीडिया पर सीमित नहीं है। पॉलिटिकल पार्टियों का अजेंडा घर-घर में घुस चुका है। भाई-बहनों में विचारों को लेकर लड़ाई होने लगी है। ऐसे में वही खुश हैं, जो वॉट्सऐप और मोबाइल से अभी भी दूर हैं। इस सबका कारण ‘तथाकथित’ विचारधारा है। वही, विचारधारा जिसके लिए हम आप लड़ने लगते हैं। जिसके लिए हम कहीं ‘हिंदू राष्ट्र’, कहीं ‘गजवा-ए-हिंद’ तो कहीं ‘अमुक जाति मुक्त भारत’ जैसे ख्याली पुलाव पकाते रहते हैं।

चेतना पर हावी हो रही है कट्टरता

धीरे-धीरे हमारी चेतना पर कट्टरता हावी होने लगती है और हम खुद को और कट्टर पाकर भी खुश रहते हैं। इसका कारण होता है कि आपको सोशल मीडिया पर चार ऐसे लोग मिल जाते हैं जो बात-बात पर ‘आह दद्दा, वाह दद्दा’ करके आपके रायते को और फैला देते हैं। ऐसे में कभी आप उठते हैं तो देखते हैं कि अरे मेरी विचारधारा का पोषक तो उसी से मिल रहा है, जिसको वह न जाने क्या-क्या कह रहा था।

लोकल डिब्बा को फेसबुक पर लाइक करें।

ठीक ऐसा ही कुछ है ममता बनर्जी की अमित शाह और नरेंद्र मोदी से मुलाकात में। जी नहीं, देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से एक राज्य की मुख्यमंत्री का मिलना कहीं से गलत नहीं है। दरअसल, गलत हम और आप होते हैं- वह भी तब, जब इन्हीं में से किसी नेता की तरफदारी करते हुए रिश्तों को तार-तार कर रहे होते हैं। अपने ही भाई, बहन, दोस्त को कुछ ऐसे ‘पंथ’ का टैग दे रहे होते हैं, जिससे उसको तकलीफ हो। गलत हम तब भी होते हैं, जब किसी के विचार सुनते ही उसे खांचों में बांटने लगते हैं।

गलती हमारी सबसे ज्यादा है

गलत हम तब भी होते हैं, जब एक विचारधारा, धर्म, जाति, संप्रदाय या पार्टी के नाम पर किसी को पीट रहे होते हैं। गलत हम तब भी होते हैं, जब किसी बुजुर्ग या पढ़े-लिखे इंसान को उसके विचारों के लिए हूट कर रहे होते हैं। गलत हम तब भी होते हैं, जब हम किसी महिला की स्वच्छंदता को देखकर तिलमिला उठते हैं। उसके कपड़ों को लेकर उसे भरा-बुला कहते हैं। नारीवादियों को गाली देते हैं। लैंगिक समानता के पक्षधरों को बिना समझे उन्हें लानते भेजने लगते हैं।

गलत हम बहुत बार होते हैं। उस गलती के पीछे आपके हाथ में रखा मोबाइल और उसपर आ रहे नफरती कॉन्टेंट हैं। नहीं, मैं आपसे राजनीतिक रूप से इनऐक्टिव होने के लिए नहीं कह रहा हूं। मैं आपसे विचारधारा से भी हटने के लिए नहीं कह रहा हूं। मैं बस इतना कह रहा हूं कि अगर आप बीजेपी समर्थक हैं तो किसी दूसरे समर्थक से नफरत मत करिए। आप ममता बनर्जी के समर्थक हैं तो बीजेपी समर्थक को मारने मत लगिए। आप कांग्रेस समर्थक हैं तो बाकियों से कटिए मत।

ताकि रोटी कड़वी न लगे

शायद आप समझ नहीं रहे हैं कि राजनीति सदियों से चल ही है और चलेगी। हमारा आपका जीवन दिन ब दिन कम होता जा रहा है। इसे उन्हीं मामा, चाचा, काका, भइया, दीदी और दोस्तों के साथ जी लीजिए, जो आपसे सहमत नहीं होते हैं। आप उनसे खूब तर्क-वितर्क कर लीजिए लेकिन ध्यान रहे कि जब साथ खाना खाने बैठें तो रोटी कड़वी न लगे। इतना सा ही समझ लीजिए कि आप वोट पांच साल में एक बार डालेंगे लेकिन रोटी रोज खाएंगे।

किसी के विचारों से लड़ना है तो उससे बहस कीजिए, हिंसा नहीं। विचारों से उसको शांत करिए, उसपर लाठियां बरसाकर और गोलियां चलाकर नहीं। किसी से असहमति है तो उसका तर्क दीजिए, गाली नहीं। किसी की हत्या और मॉब लिंचिंग को जस्टिफाई मत करिए। हत्या का कारण कुछ भी वह कभी भी ‘धर्म’ के हिसाब से नहीं होती है। अगर किसी का भी धर्म, किसी भी कारण से, किसी भी प्रकार के व्यक्ति की हत्या के लिए उकसाता है तो उस धर्म को सुधारिए, किसी को मारकर उस व्यक्ति को नहीं।

बस इतनी सी गुजारिश है कि थोड़ी शालीनता और शीतलता मन में लाइए। बहस में एक बार किसी से हार जाने पर आप कुछ खोएंगे नहीं। अगली बार और तैयारी से आइए और अपनी विचारधारा को डिफेंड करिए लेकिन शारीरिक उत्तेजना में नहीं।

प्लीज, समझ जाइए न!