छात्र राजनीति : ABVP का बढ़ता सुरूर, किसका कसूर

पूरे देश में भगवा रंग का जलवा है| सेंटर से लेकर शिक्षण संस्थानों तक हर तरफ़ इसकी लहर है| बीजेपी की राजनीति का अपना ही दौर है| जहाँ इस दौर से हम छात्र राजनीति और ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्) को अलग कर नहीं देख सकते| संघ के इस छात्र संघ में आज 32 लाख सदस्य है जिसमें 9 लाख तो 2014 के ही मोदी लहर में पैदा हुए हैं| वैसे तो यह 1948 में ही बन गई थी| पर इसका भगवा रंग असल में मंडल आयोग के खिलाफ़, आरक्षण के खिलाफ़, सवर्णों की लड़ाई में गहराया|आपातकाल के दौर में इसने जहाँ इस काल को ख़त्म करने की लड़ाई लड़ी, वहीँ अयोध्या कांड में इसका तांडव देखने को मिला|आप माने न माने भारत में स्कूलों की चेन चलाने में राइट आगे है तो यूनिवर्सिटी के गेम चलाने में लेफ्ट|पिछले साल हैदराबाद यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,जादवपुर यूनिवर्सिटी,जेएनयू और इस साल दिल्ली यूनिवर्सिटी में जो हुआ, उसके बाद छात्र राजनीति वाद विवाद और विचार का मुद्दा बन गई है|

लोग समझने की कोशिश में हैं कि लेफ्ट और राईट की लड़ाई में ‘राइट’ और ‘रॉंग’ कौन है? क्या लेफ्ट इसलिए सही है क्यों कि वो हमेशा समानता और स्वतंत्रा की बात करता है? फ़िर राइट गलत कैसे है जो पहले राष्ट्र और फ़िर व्यक्तिगत राइट्स की बात करता है! तो सीपीआई ,सीपीएम और उनकी एसएफआई कैसे गलत हुई ?क्यों कि दबे कुचलों के लिए आवाज उठाना और आर्थिक रूप से उन्हें समानता दिलाने की बात कहाँ से गलत है|पर प्रश्न यह है कि क्या आज भी यह यही कर रहें हैं या सिर्फ राजनीति| ये सारे मुद्दे एक वक़्त के मुद्दे हैं पर उनपर हर वक़्त बहस करना और हिंसा कर लेना, कहाँ से सही हो सकता है|

1917 की रुसी क्रांति से लेकर फ्रांस सहित तमाम क्रांतियों को देखे तो पता चलता है कि क्रांतियाँ में छात्रों का एक बड़ा हाथ होता है| भारत में भी आज़ादी से लेकर बाद तक के बड़ी क्रांतियों को देखे तो उनमें छात्रों का हाथ रहा है|150 साल पहले दादा भाई नवरोजी ने सबसे पहले भारत में छात्र राजनीति की नीव रखी थी| तब वो लड़ाई का कारण लाहौर के मेडिकल कॉलेज में भारतीय छात्रों के साथ अंग्रेजों द्वारा भेदभाव करना था|वो लड़ाई राजनीति कम और छात्रनीति ज्यादा थी और अब राजनीति ज्यादा है और छात्र नीति कम| कभी पूरे भारत के छात्रों ने मिलकर AISF – आल इंडिया स्टूडेंट्स कांग्रेस फेडरेशन बना ‘चरखा स्वराज पहले फ़िर शिक्षा’ का नारा बुलंद किया था|वक़्त बदला और यही टूट टूट कर बिखर गया|कांग्रेस ने इसी से NSUI –यानि नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाया|कुछ छात्र संघ नक्सलवादी क्रांति से उभरे तो कुछ दलितों के उत्पीड़न के लिए खड़े हुए| SFI जो CPI और CPM जैसे कम्युनिस्ट पार्टियों का छात्र संघ है, उसका 1970 में मोटो था ‘स्टडी एंड स्ट्रगल’ पर आज ये सिर्फ स्ट्रगल करते ही दिख रही है| वैसे यह तमाम छात्र संघ की पैदाइश किसी अच्छे लड़ाई के लिए हुई थी और तब सभी का लगभग एक ही मोटो होगा ‘स्टडी एंड स्ट्रगल फॉर अ ग्रेट गोल’ पर आज सब स्टडी नहीं एक दूसरे के साथ ही स्ट्रगल कर रहे हैं,क्योंकि यह छात्रनीति नहीं राजनीति का दौर है|

यह बात आज सही है कि इस वक़्त लेफ्ट कमज़ोर हो रही है क्यों कि वो अपने मुद्दों को लेकर जमीन से नहीं युनिवर्सिटी की गलियों से ही सिर्फ लड़ रही है| वहीँ मोदी लहर के बाद राइट मजबूत हुआ है क्योंकि पाकिस्तान या आतंकवाद के खिलाफ़ और देश के अपमान में हमारे राष्ट्रवादी भावनाओं को अकसर ठेस पहुँच जाती है| यूनिवर्सिटी एक शिक्षण संस्थान है और शिक्षा का मतलब ही होता है- सारे बंधनों से जो हमें ऊपर ले आये| जात-पात,गरीबी-भूखमरी,उंच –नीच,और इंसानियत की और ले जाने वाला एक इकलौता ज़रिया यह संस्थान होते है| यही नीव होतें है बदलाव के|तो अगर आपको लोगों में राष्ट्रवाद पर उन्माद करवाना हो या समानता और स्वतंत्रता की लड़ाई सामान और स्वंत्रत लोगों में ही बैठकर कर करवाना है ,तो आपको शिक्षण संस्थाओं में पहले पैठ पाना होगा| और वही राजनीतिक पार्टियाँ कर रही हैं |राजनीतिक पार्टियाँ अपने एजेंडा पूरा करने के लिए इन्हें अपने रंगों में रंग रही है और ये छात्र मरने मिटने को तुले हैं| जो छात्र राजनीति में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहें हैं उनके लिए तो यह सब जरुरी है| पर उनका क्या जो यहाँ तमाम परेशानियों के बाद भी पढ़ने आयें हैं?

इन विचारधारा की लड़ाई से ऊपर उठिये|भूलिए मत कि एक्सट्रीम लेफ्ट और एक्सट्रीम राइट ने हमेशा दुनिया को लेनिन,स्टालिन,हिटलर और माओ जैसे लोग दिए है| जो अंत में हिंसा पर उतर आये| हिंसा ने उनके राष्ट्र हो ही नहीं पूरे मानव जाती को शर्मिंदा किया है| आप जिनकी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं तो उनके पिछड़ेपन के ज़मिनीं कारणों को जानिय| आँख बंद करके लड़ना बेकार है| आप छात्र हैं| पढ़े लिखे हैं और आधुनिक है| तो आधुनिकता के आँगन में तमाम विचार सदा ही आमंत्रित होने चाहिए, भले ही आप सहमत हो या असहमत|हिंसा तो कहीं से इसका इलाज नहीं| तो लड़ाई अपने अस्तित्व बनाने की लड़िये न की सिर्फ राजनीति चमकाने की|

शिक्षा और ज्ञान दोनों ABVP, SFI,और NSUI जैसे तमान विचरों पर,उनके कामों पर, वाद विवाद कर प्रश्न चिन्ह लगा कर उन्मुक्त होने का ज़रिया है| ना कि मारपीट कर और अशांति फैला कर अस्थिरता फैलाने का तंत्र|