क्षत्रपों के बलबूते प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे राहुल गांधी

तीन राज्यों में ऐंटी इन्कंबेंसी लहर पर सवार कांग्रेस ने किसी न किसी तरह सरकार बना ही डाली। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए ऐंटी इन्कंबेंसी की लहर उतनी नहीं दिख रही है, जितनी की किसी विधानसभा चुनाव के लिए होती है। फिर भी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को हर मोर्चे पर घेरने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इस घेराबंदी का असर भी दिख रहा है और एनडीए को चुनाव से पहले ही नुकसान होने लगा है। कांग्रेस अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों को साथ लेकर मोदी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने की कोशिश तो कर रही है, साथ ही वह अपने संगठन को भी दोबारा खड़ा कर रही है।

 

कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) के साथ चुनाव बाद हुए कांग्रेस के गठबंधन ने उसे एक संजीवनी दे दी। पहले कर्नाटक में वह बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने में कांग्रेस को कामयाबी मिली फिर तीन राज्यो में जीत। हालांकि, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं बन पाई और अकेले उतरने को मजूबर है। खैर, यह भी हो सकता है कि गठबंधन की जीत में ही कांग्रेस अपनी जीत देख रही हो क्योंकि अखिलेश और मायावती अंत में कांग्रेस के ही साथ जाएंगे।

 

अगर दक्षिण से ही शुरू करें तो कांग्रेस को तमिलनाडु में स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके, कर्नाटक में जेडीएस, आंध्र और तेलंगाना में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी, महाराष्ट्र में एनसीपी और संभवत: दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी का समर्थन मिल सकता है। बीजेपी जानती है कि अगर कांग्रेस को कमजोर करना है तो मामला त्रिकोणीय करना होगा। ऐसे में बीजेपी भी हर संभव कोशिश कर रही है कि जहां-जहां संभव हो, तीसरा मोर्चा खड़ा कर दिया जाए। यूपी में शिवपाल यादव जैसे खेमे हों या फिर केसीआर के नेतृत्व वाला संभावित तीसरा मोर्चा, ये कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाने की ताकत रखते हैं।

 

राजनीतिक विश्लेषकों को मानना है कि राहुल के नेतृत्व में सिर उठाती कांग्रेस के लिए यूपी में अकेले उतरना भविष्य की रणनीति हो सकती है। कहा जा रहा है कि भविष्य में अगर कांग्रेस को अपने लिए संभावनाएं तलाशनी हैं तो उसके लिए अकेले लड़ना ही फायदे का सौदा होगा। इसके अलावा बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में कांग्रेस ने एनडीए को पटखनी देने की पूरी तैयारी कर ली है।

 

पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ भी कांग्रेस के गठबंधन की चर्चाएं हुईं लेकिन डीएमके चीफ स्टालिन ने जैसे ही राहुल का नाम पीएम पद के लिए आगे बढ़ाया, ममता बनर्जी और समूची टीएमसी भड़क गई। जाहिर है इसके पीछे ममता बनर्जी की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। यहां भी बीजेपी चुनाव को त्रिकोणीय बनाकर फायदा उठाने की जुगत में है।

 

2014 के चुनाव में हार के बाद से गर्त में जा रही कांग्रेस के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव कैसा भी हो लेकिन पार्टी को जरूर जिंदा कर देगा। कर्जमाफी जैसे लोकलुभावन वादे अर्थव्यवस्था को नुकसान भले ही पहुंचाएं, इसमें कांग्रेस को कोई ज्याती नुकसान नहीं है।