राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर मजबूत हो गए हैं

राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है. अब राहुल गांधी केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. 23 मई 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजों आए. राहुल गांधी को यह तो पता कि नरेंद्र मोदी की ही सरकार बनेगी, लेकिन इस तरह बनेगी, उन्होंने नहीं सोचा था. राहुल गांधी ने ट्विटर पर 4 पेज का लेटर लिखा है. इस लेटर में उन्होंने साफ किया है कि क्यों वे कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ रहे हैं.

राहुल गांधी ने अपने खुले खत में जो भी लिखा है, उससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना उनकी मजबूरी थी. अगर वे अपने पद पर बने रहते तो पार्टी में वही चेहरे भी बने रहते जिनके वंशवाद के चलते पार्टी की यह हालत हुई है. पार्टी में ऐसे कई लोग हैं जो वर्तमान राजनीति के हिसाब से महज जुमलेबाज हैं, और पार्टी के लिए मजबूरी हो गए हैं, जिन्हें ढोना पड़ रहा है.

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अब अच्छे नेता बन सकते हैं राहुल गांधी!

राहुल गांधी अगर पार्टी अध्यक्ष बने रहकर ये मांग करते तो शायद वे नैतिक रूप से इसे करने के काबिल नहीं रहते. हालांकि राहुल गांधी जो भी हैं, उसमें वंशवाद का ही हाथ है, वरना इस काबिल नहीं हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्हें बना दिया जाए. उनमें अब यह काबिलियत धीरे-धीरे पनप रही है, उम्मीद है एक न एक दिन वे अच्छे नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर लेंगे.

दिसंबर 2018 में हुए पांच राज्यों के चुनाव परिणाम में भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) को बड़ा झटका लगा. लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे इन विधानसभा चुनावों के बारे में कहा गया कि नरेंद्र मोदी की सत्ता हिल रही है. चुनाव के पोस्टर बॉय रहे राहुल गांधी. चेहरा उनका था, मेहनत स्थानीय नेताओं की थी.

राजस्थान में अशोक गहलोत, सचिन पायलट, मध्य प्रदेश में कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल जैसे नेताओं ने खूब मेहनत की. इन जगहों पर कांग्रेस की सरकार बनी. शेष राज्यों में भी कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया. कांग्रेस का मनोबल बढ़ा. पंजाब में भी कैप्टन साहब की सरकार बन गई. लगा कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार को टक्कर देने के लायक हो गई है.

राहुल गांधी के अध्यक्ष बने रहने में कांग्रेस के ‘ओल्ड गार्ड’ का क्या फायदा है?

शिवराज सिंह जिस मध्य प्रदेश में 15 सालों से बीजेपी को बचाए रखे थे, सरकार नहीं बचा पाए. लेकिन एक बार फिर लोकसभा चुनावों में यही जीत कांग्रेस के गले की हड्डी बन गई. मुख्यमंत्री बनने की लालसा ने पार्टी में दो धड़े कर दिए जिनका असर लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला.

फिर भी कांग्रेस में चलेगी राहुल की ही

राहुल गांधी इस्तीफा देकर कांग्रेस के लिए ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं. यह बात जगजाहिर है कि वे चाहे कांग्रेस के अध्यक्ष रहें या न रहें, कांग्रेस का हर महत्वपूर्ण फैसला उनकी नजरों से होकर ही गुजरेगा. उनकी मर्जी के खिलाफ पार्टी में कुछ नहीं होगा. पार्टी के असली आलाकमान राहुल गांधी बने ही रहेंगे.

कांग्रेस पार्टी के हाथों सत्ता कभी जाने वाली नहीं है. कांग्रेस भी उनके बिना कुछ नहीं है. दुर्भाग्य ही सही, पर यह सच है. तभी इस्तीफे का ऐलान करने के बाद से ही उन्हें मनाने के लिए सारी पार्टी एक स्वर में नजर आई.

मुख्यमंत्री कमलनाथ, अशोक गहलोत, डिप्टी सीएम सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं की मांग रही कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद राहुल गांधी न छोड़े. बहुतों ने तर्क दिया कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष का पद राहुल गांधी छोड़ते हैं, तो पार्टी के लिए सही नहीं होगा, कांग्रेस पार्टी खत्म हो जाएगी.

राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर ठीक किया है. उन्होंने खुला खत लिखकर स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी में पुनर्गठन की जरूरत है. लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी सामूहिक तौर पर सबको लेनी होगी. लोगों को अपने पदों से हटना होगा, और उन्हें मौका देना होगा, जो पार्टी के लिए बेहतर प्रदर्शन कर सकें.

सत्ता गांधी परिवार की थाती है, जिसे राहुल गांधी ही ढोएंगे. कांग्रेस उनके हाथों की कठपुतली बनी रहेगी, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता. छोटे कार्यकर्ता से लेकर दिग्गज नेता, सब गांधी परिवार के वफादार ही कांग्रेस में हैं. वे एहसानों तले इतने दबे हैं कि चाह कर भी बगावत नहीं कर सकते. राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर न रहकर पार्टी की सफाई का काम कर सकते हैं.

राहुल को घेर पाना बीजेपी के लिए होगा मुश्किल

नामदार के टैग पर बीजेपी उन्हें घेर भी नहीं सकेगी, और बैकडोर से उनका एजेंडा चलता रहेगा. राहुल गांधी ने संघ और बीजेपी के लिए तेवर नहीं बदले हैं. न्यायपालिका, चुनाव आयोग सबको खुले खत के जरिए घेर चुके राहुल गांधी अब ज्यादा बेहतर काम करेंगे. उम्मीद तो यही की जानी चाहिए. बस मुद्दों से कटें न. कांग्रेस का पुनर्गठन करें. पुराने दगे कारतूसों को बाहर फेंके, और नई टीम बनाएं, तो कांग्रेस के लिए जमीन पर टिक पाना आसान होगा.

छोटे कार्यकर्ता किसी भी पार्टी को बड़ा बनाते हैं. यही मूलमंत्र बीजेपी और संघ को पता है. राहुल गांधी की कोशिश यही होनी चाहिए कि कैसे छोटे वर्ग तक पहुंच बनाई जाए. अब इंदिरा गांधी का पोता होने की वजह से कोई कांग्रेस को वोट नहीं देगा. खुद की पहचान बनानी होगी. उम्मीद है, हताश-निताश राहुल गांधी के प्लान बी में यही सब हो.

शायद पार्टी अध्यक्ष के पद पर बने रहकर राहुल गांधी किसी भी नेता पर इस्तीफा देने के लिए नैतिक दबाव दे भी नहीं सकते थे. हार के लिए जाहिर तौर पर वे भी जिम्मेदार थे. उन्होंने मोदी को केंद्र बिंदु बनाकर चुनाव लड़ा हार गए. अगर चुनाव मुद्दों पर लड़ा गया होता तो शायद वे जीत जाते. कांग्रेस को एक संजीवनी की जरूरत है. यह संजीवनी युवा नेता बन सकते हैं. नए चेहरे जब तक फ्रंट फुट पर नहीं खेलेंगे, कांग्रेस का भला होने से रहा. राहुल गांधी अपनी चिट्ठी में बहुत कुछ कह गए हैं. सब गौर करने लायक बातें हैं.

चुनाव से पहले ही तय हो गई थी कांग्रेस की हार?

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के जुमले, नारे, कैंपेन और चुनावी मेनिफेस्टो, भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) की जीत को पुष्ट कर रहे थे. जब देश में राष्ट्रवाद, गाय, धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर हो, तो अफस्पा, कश्मीर, राफेल, सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े करने, पुलवामा में सीआरपीएफ काफीले पर हमले के बाद सरकार को कूटनीतिक तरीके से घेरना, कहीं न कहीं ये तय कर चुके थे कि कांग्रेस पार्टी को एक बार फिर करारी हार मिलने वाली है.

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी को मिले राजनीतिक सलाहकार जमीन से बिलकुल कटे हुए थे. उन्हें जरा भी एहसास नहीं हुआ कि जिन मुद्दों को वे चुनाव प्रचार में इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें जनता दरअसल जानती ही नहीं है. कोई मतलब ही नहीं है, ऐसे मुद्दों से. राफेल, चौकीदार चोर है जैसे नारे पत्रकारों के लिए गढ़े जाते हैं, आम जनता को डिफेंस डील से कोई मतलब नहीं होता. शायद पार्टी सलाहकारों को इस बात का अंदाजा नहीं था.

जिन मुद्दों पर कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा, बीजेपी ने उन्हीं मुद्दों को अपना ढाल बना लिया. राहुल गांधी को इस्तीफा देना ही था. अगर वे खुद पार्टी से बाहर नहीं जाते, तो वे उन नेताओं को बाहर नहीं कर पाते जिनकी वजह से कांग्रेस इस हाल में पहुंची है. अब शायद भविष्य में ऐसा हो कि कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी जब वापसी करें, तो वे अपने मन के नए चेहरों को पार्टी में रख सकें. जो भविष्य में कांग्रेस पार्टी के उद्धारक साबित हों.