कांग्रेस को राहुल गांधी की मासूमियत नहीं, सोनिया के तेवर ही चाहिए?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यानी कांग्रेस पार्टी इस समय काई हो गई है। जो खुद तो शून्य दिख रही है लेकिन अच्छे-अच्छों को फिसला सकती है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में देखने को मिला। कांग्रेस को खुद भी नहीं पता था कि वह इतनी सीटें जीत सकती है। हालांकि, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी का पर्दे के पीछे जाना और सोनिया गांधी का दोबारा सक्रिय होना भी बताया जा रहा है।

हरियाणा के बारे में कहा जा रहा है कि यह जीत कांग्रेस की कम और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ज्यादा है। हुड्डा वही हैं, जिन्हें राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष रहते कभी आगे आने नहीं दिया। हुड्डा ने तमाम तरीके अपनाए लेकिन राहुल गांधी ने अशोक तंवर पर भरोसा बनाए रखा। संभवत: राहुल गांधी हुड्डा जैसे भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं से कांग्रेस को दूर ले जाना चाहते थे। इसे राहुल गांधी की मासूमियत कहें या फिर राजनीतिक अपरिपक्वता कि आप चुनाव में हुड्डा जैसे नेताओं के बिना नहीं जीत सकते।

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राहुल के रास्ते से हट गई कांग्रेस

लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया। कई नेताओं ने तमाम कोशिश करके राहुल गांधी को रोकने की कोशिश की लेकिन राहुल नहीं माने। हुड्डा ग्रुप के नेताओं ने आखिरकार सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बनवा दिया। फिर वही खेल शुरू हो गया, जिसको रोकने के लिए राहुल गांधी ने बहुत कोशिश की।

शायद यही वजह रही होगी कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो बार सरकार बनाने में कामयाब रही और राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस दिन-ब-दिन नीचे जाती गई। राहुल और सोनिया की विचारधारा में अंतर मध्य प्रदेश और राजस्थान का मुख्यमंत्री चुनने के दौरान भी दिखा। राहुल तमाम कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट को सीएम नहीं बनवा पाए।

सोनिया ने हुड्डा जैसे नेताओं को दिया फ्री हैंड

लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के पुराने नेताओं ने राहुल की मर्जी के खिलाफ सोनिया के बलबूते अपने बेटों को टिकट दिलाया। बाद में इसपर राहुल गांधी ने अफनी नाराजगी जता ही दी। खैर, अब महाराष्ट्र और हरियाणा में भी सोनिया स्टाइल पॉलिटिक्स दिखने लगी है। चुनाव नतीजे आते ही सोनिया गांधी ने हरियाणा में हुड्डा को फ्री हैंड दे दिया और राहुल गांधी पूरे सीन से गायब रहे।

इससे स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस राहुल गांधी के नहीं, सोनिया गांधी के ही रास्ते पर चलेगी। यह राजनीति का दुर्भाग्य है कि यह कभी शुचिता की ओर ना तो लौटना चाहती है और ना ही लोग ऐसा पसंद करते हैं। उन्हें भी साफ छवि वाले अशोक तंवर की बजाय भूपेंद्र हुड्डा ही पसंद आते हैं।