मंदसौर रेप: राजनीति से पेट नहीं भरा हो तो थोड़ा शर्म कर लीजिए

मध्य प्रदेश का एक जिला है मंदसौर. मंदसौर पिछले एक साल से खूब चर्चा में रहा, कारण वहां किसानों पर राजनीति और सिस्टम ने गोली चलाई थी, पांच किसान मारे गए थे. खूब हंगामा मचा था और हंगामे के बाद वही हुआ था जो अक्सर होता है. हंगामे के बाद राजनीति, भरपूर राजनीति हुई. लेकिन हुआ कुछ नहीं. ठीक एक साल बाद गोलीकांड की रिपोर्ट आई, सबको क्लीन चिट दे दी गई.

ठीक एक साल बाद उसी मंदसौर में एक भयावह कांड हुआ है. स्कूल से निकली एक आठ साल की मासूम बच्ची स्कूल के बाहर घर वालों का इंतजार कर रही थी. घर वाले थोड़ा लेट हुए तो बच्ची को हैवान उठा ले गए. बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ, और पास के एक जंगल में फेंक दिया गया, मरा समझकर. ख्याल रहे कि बच्ची आठ साल की थी. कुछ घंटों के बाद बच्ची को ढूंढा गया, बच्ची जीवित थी, उसे अस्पताल ले जाया गया, उस मासूम की आंतें काटी गईं तब जाकर उसकी सांसों को जारी रखा जा सका. मामला चर्चा में आया. उसके बाद हंगामा मचा, और फिर हंगामे के बाद फिर वही राजनीति!

कोई कह रहा है कि ‘कठुआ’ वाले चुप हैं, कोई कह रहा है मोमबत्तियां कम निकाली जा रही हैं, कोई कह रहा है कि आरोपी मुस्लिम हैं तुरंत फांसी देना चाहिए, कोई कह रहा है सरकार के कारण रेप हो रहे हैं, कोई कह रहा है विपक्ष राजनीति पर उतर आया है, कोई कह रहा है नेता जी को धन्यवाद करिए कि वो अस्पताल आए हुए हैं. ऐसे ही तमाम लफ्फाजी हो रही है.

ये जितना हंगामा, बयान और राजनीति हो रही है, उसके लिए मंदसौर जिला एकमात्र उदाहरण है. एमपी और देश में रोज ऐसी तमाम घटनाएं होती हैं, जब किसान मरता है या बच्चियों का रेप होता है. हंगामा तभी मचता है, जहां राजनीति की गुंजाइश होती है. हंगामा तभी मचता है जब मामला चर्चा में आता है. सच्चाई ये है कि हर उस रेप-कांड के पीछे वो मानसिकता छिपी होती है जिसके सामूहिक जिम्मेदार हम हैं. अगर अब नहीं चेते तो स्थिति और भयावह हो जाएगी और वो दिन दूर नहीं होगा जब ऐसे रेपकांड और ऐसे केस सीधे हमसे जुड़ने लगेंगे.

इन घटनाओं पर हो रही राजनीति और ज्यादा चुभती है, राजनेताओं और समाज के जिम्मेदार लोग जब इस पर राजनीति करने को उतारू हो जाते हैं तो सबसे पहले उनकी सोच को ही श्रद्धांजलि देने का मन करता है. लेकिन अफसोस है कि ऐसे ही राजनेता हमारे प्रतिनिधि हैं, अफसोस है कि हम उसी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जहां ऐसी घटनाएं रोज होती हैं. समय सोचने का है. यकीन मानिए सरकार और विपक्ष इन घटनाओं से पहले और बाद में भी सिर्फ राजनीति ही कर सकती है इन्हें रोक नहीं सकती, रोकना हमें ही है.