अमेरिका की तरह ‘ग्रेट’ बनने की राह पर फ्रांस

अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद अब विश्व की निगाहें फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावों पर लग गयी हैं. अमेरिका की तरह ही यहाँ पर भी आव्रजन और इस्लामिक कट्टरपंथ प्रमुख चुनावी मुद्दा बना हुआ है. फ्रांस सहित पूरे यूरोप में हाल ही में हुए आतंकवादी घटनाओं से फ़्रांसिसी लोग अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित दिखाई दे रहे है,जिसका फायदा कुछ दक्षिणपंथी दल उठाना चाह रहे हैं. यही कारण है कि दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी दल ‘नेशनल फ्रंट’ की नेता मेरिन ली पेन ओपिनियन पोल्स में बढ़त बनाती हुई दिख रही हैं.सोमवार शाम उन्होंने फ्रांस के पूर्वी शहर ‘लियोन’ में राष्ट्रपति चुनावों के लिए अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए वैश्वीकरण और कट्टरपंथी इस्लाम पर हमला बोला. उन्होंने यूरोपीय संघ में फ्रांस की सदस्यता पर जनमत संग्रह कराने का वादा भी किया और ‘फ्रेक्सिट’ (frexit) का नारा दिया.

नेशनल फ्रंट को फ्रांसीसी लोगों की पार्टी बताते हुए ली पेन ने कहा कि इस चुनाव में फ्रांस की स्वतंत्रता और फ़्रांस के लोगों का अस्तित्व दांव पर है.वैश्वीकरण के कारण फ्रांस के लोगों की देशभक्ति उनसे छीन ली गयी और उन्हें अपने देश से प्यार दिखाने का मौका ही नही दिया जा रहा है.ट्रम्प के ‘अमेरिका फर्स्ट’ के तर्ज पर ‘फ्रांस फर्स्ट’ का नारा देते हुए पेन ने कहा कि यह राईट और लेफ्ट की नहीं बल्कि देशभक्तों और वैश्वीकरण के समर्थकों की लड़ाई है. वैश्वीकरण पर निशाना साधते हुए पेन ने वैश्वीकरण को ‘बेरोज़गारों को बेचने’ का एक साधन बताया और कहा कि आर्थिक वैश्वीकरण और इस्लामिक कट्टरता एक दुसरे की मदद कर रही है और दोनों का उद्देश्य फ्रांस और फ़्रांसिसी अस्मिता को नीचे झुकाना है. ‘स्थानीय क्रांति’ का नारा देते हुए पेन ने कहा कि वह ‘समझदार संरक्षणवाद और आर्थिक देशभक्ति’ के जरिये फिर से एक मुक्त, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक फ्रांस की स्थापना करना चाहती हैं. यूरोपीय संघ (ईयू) को एक विफलता बताते हुए ली पेन ने ईयू के बारे में कहा की ईयू कभी भी अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं कर सका.ली पेन का कहना है कि वो ईयू में फ्रांस की सदस्यता के लिए फिर से शर्तें लगाएँगी और अगर इसमें नाकाम रहीं तो फिर लोगों को जनमतसंग्रह का विकल्प मिलेगा.उन्होंने अपने घोषणा पत्र में आयात कर को बढाने,विदेशी नागरिकों के नौकरी पर कर लगाने,प्रवासियों पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाने, गैरक़ानूनी प्रवासियों को देश से बहार निकालने और नकाब,मस्जिदों पर प्रतिबंध लगाने का भी वादा किया. अपने विरोधियों को घेरते हुए पेन ने उन्हें ‘कैश रिच राईट’ और ‘कैश रिच लेफ्ट’ घोषित करते हुए अपने आप को ‘लोगो का उम्मीदवार’ घोषित किया. ब्रेक्जिट,ट्रम्प की जीत,आस्ट्रिया और इटली में भी दक्षिणपंथ में भी दक्षिणपंथ के उभार से उत्साहित पेन ने कहा कि ‘लोग फिर से जाग रहे है और इतिहास भी अपने पन्ने पलट रहा है.’
वहीँ सेण्टर लेफ्ट दल ‘फॉरवर्ड पार्टी’ के उमीदवार और पूर्व वित्त मंत्री 35 वर्षीय इमैनुएल मैक्रॉन ने ली पेन पर निशाना साधते हुए कहा कि वह ‘लोगों की उम्मीदवार’ कभी हो ही नही सकती और वह फ्रांस के आदर्शों ‘स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व’ को धोखा दे रही हैं.मुक्त व्यापार,आर्थिक उदारीकरण और प्रगितिशील विचारों के समर्थक मैक्रॉन ने कहा कि वह फ्रांस की राजनीति की आत्म्तुष्टता और निस्सारता को तोड़ना चाहते है. वह फ्रांस में उपजी आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को प्रमुख मुद्दा बनाना चाहते है जिससे आम लोगो का हित जुड़ा हुआ है.गौरतलब है कि ओपिनियन पोल्स में मैक्रॉन को दूसरा स्थान मिला है और दूसरे चरण के चुनाव में उन्हें बढ़त मिलने की भी सम्भावना जताई जा रही है. यह सम्भावना इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि वर्तमान राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद बेरोजगारी को कम ना कर पाने और आर्थिक स्थिति ना सुधार पाने के कारण ही दूसरी बार चुनाव नही लड़ रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि मैं किस आधार पर चुनाव लडूंगा जब मैं अपने उस वादे को पूरा नही कर पाया जिसके आधार पर
मैं सत्ता में आया था.
एक और प्रमुख उम्मीदवार पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांसिस फिलियन अपनी बढ़त खोते हुए नज़र आ रहे है.सेण्टर राईट दल ‘रिपब्लिकन पार्टी’ के उम्मीदवार फिलियन शुरुआत में अपनी बढ़त बना रहे थे पर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के आरोपों में घिरने के बाद उनकी लोकप्रियता में कमी आ रही है और हालियाँ ओपिनियन पोल में उन्हें तीसरा स्थान मिला है.हालाँकि फिलियन ने अपनी इस गलती को स्वीकार कर लिया है पर उन्होंने राष्ट्रपति चुनावों से पीछे हटने से साफ़ मना कर दिया.उन्होंने भी अपने चुनावी घोषणा में फ्रांस को एक युरोपीय शक्ति बनाने का वादा किया और गरीबी,बेरोजगारी और कट्टर इस्लाम के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की.
सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बेनट हैमन इस दौड़ में कहीं पिछड़ते नज़र आ रहे हैं. धर्मनिरपेक्षता और आर्थिक उदारवाद के पक्षधर हैमन इस्लामिक लोगो को दरकिनार किये जाने के धुर विरोधी है.उनका कहना है कि फ्रांस को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारनी चाहिए जिससे वो महान बन पायेगा ना कि लोगों को धर्म के आधार पर उन पर ठप्पा लगा देने से.फ्रांस के उदारवादी लोग हैमन और मैक्रॉन में फ़्रांसिसी धर्मनिरपेक्षता का चेहरा देख रहे है जो फ़्रांसिसी क्रांति से उत्पन्न हुई थी और १९०५ में थर्ड रिपब्लिक के स्थापना के दौरान इसे और मजबूत रूप प्रदान किया गया था. तब लोगो को अपने धर्म के पालन की आज़ादी दी गयी थी और राज्य तथा धर्म को एक दुसरे से अलग रखने की घोषणा की गयी थी.परन्तु हलियाँ विमर्श में इन आदर्शों का पालन कहीं भी नही हो रहा. दक्षिणपंथी दल धार्मिक प्रत्ययों का खुला प्रयोग कर इस चुनाव को इसाई बनाम इस्लाम, वैश्वीकरण बनाम राष्ट्रवाद बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके कारण गरीबी,बेरोजगारी जैसे आर्थिक और लोगों से जुड़े रोजमर्रा के मुद्दे, जिससे फ्रांस कहीं ना कहीं त्रस्त है, पीछे चले जा रहे हैं.