सपनों के ‘सी-प्लेन’ पर उड़ता एक आम नागरिक

आज पापा का मेरे ‘स्वदेशी’ वाले नम्बर पर कॉल आया। बोल रहे थे कि देश में इतना सौहार्द और भाईचारा वाला माहौल बना हुआ है इसलिए घर पर आओ कुछ दिन अपने भाइयों के साथ भाईचारे और हमारे साथ सौहार्द से रह लेना।

मैं पूछा कैसे आऊं?
तो पापा ने इतना ही कहा था कि भारतीय रेल से… और शायद ‘स्वदेशी’ के बेहतरीन नेटवर्क के कारण फ़ोन काट गया।

पापा ने कह दिया की ट्रेन से आओ। अब कौन समझाए पापा को कि “28% जीएसटी से डर नहीं लगता पापा ट्रेन दुर्घटना से लगता है।”

फिर अचानक से याद आया कि किसी ने 2014 में 15 लाख रुपया देने का वादा किया था, कल बैंक खाता चेक किया तो मेरा आ गया था।

सोचा ये रुपये बचाकर क्या करूंगा, कोई नया व्यापार तो शुरू करना नहीं है। साल में 2 करोड़ लोगों को नौकरी मिल रही है तो मैं भी तो भारत का ही नागरिक हूँ ना। आधार कार्ड, पैन कार्ड, पिताजी के राशन कार्ड के फूल प्रूफ के साथ। माफ़ कीजियेगा उम्र में कुछ कमी होने के कारण मैं पहचान पत्र नहीं दिखा पाऊंगा।
और मैंने तो अभी तक किसी राजनीतिक पार्टी के बारे में कुछ कहा भी नहीं है कि मुझे कोई पाकिस्तान का बता दे।

हाँ तो मैंने सोचा अब हवाई जहाज से कौन जाए। देश में सी-प्लेन का नया नया आगमन हुआ है। क्या सिर्फ नेता लोग ही उससे जायेंगे क्या? सो उसी से जाते हैं। तो मैंने अपने मेक इन इंडिया मिशन के तहत निर्मित फोन में लगे स्वदेशी सिम से विजय माल्या को फोन किया, जो कि अब ब्रिटेन से भारत आ चुका है और किंगफिशर कंपनी के सी-प्लेन का एक टिकट डिजिटल भुगतान द्वारा बुक करवाया।

उत्साह तो अपने चरमोत्कर्ष पर था। पहली बार सी-प्लेन से यात्रा कर रहा था। जैसे ही मैंने सी-प्लेन के दरवाजे पर अपना कदम रखा। तो “प्लीज सिक्योरिटी चेकिंग” नामक कुछ भीषण अंग्रेजी शब्द आये।

उसके बाद दरवाज़ा बंद हो गया। अब खुल ही नहीं रहा था। अब वह रेलगाड़ी तो थी नहीं कि निकालो फ़ोन और ट्वीट करके शिकायत कर दो रेलमंत्री जी के पास।

कितने परिश्रम के बाद भी दरवाज़ा खुल ही नहीं रहा था तो मैं अचानक से मायूस होकर बोला “मैं तो देशभक्त हूँ और भारत माता की जय भी बोलता हूं।” मेरा इतना कहना था कि अचानक से सराक से दरवाजा खुल गया।
मैं अंदर प्रवेश किया और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। सोचा स्वदेशी निर्मित प्लेन यदि ज्यादा देर खड़ा हो तो क्या पता बाकी के सवार कुछ यात्री मुझे कुछ घोषित ही कर दें।

अब माता गंगा के पावन जल पर विमान ने यात्रा प्रारंभ ही की थी कि स्वच्छ जल में एकदम पारदर्शिता झलक रही थी। जो कि लगातार संघर्ष के बाद दिन-रात के चुनाव प्रचार के व्यस्त जीवन से समय निकालकर मां गंगा के एक बेटे ने ही साफ़ करवाया है।

यात्रा के दौरान मन नहीं लग रहा था तो मैंने अपने फ़ोन में शेर के निशान वाला इयरफोन डाला और आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ लगाया।..और ध्यान लगाकर विकास की बातें सुनने लगा।

बेशक..मन की बात थोड़ी लंबी थी और मेरी यात्रा उसकी अपेक्षा थोड़ी छोटी तो बीच में ही मुझे अपने कानों को विकास से वंचित करवाना पड़ा और प्लेन से थोड़ा जल्दी उतरना था क्योंकि सी-प्लेन को काला धन लाने विदेश जाना था। वापसी के वादे का 100वां दिन जो था।
प्लेन से उतरकर घर पहुंचा तो देखा कि सारे लोग बहुत खुश हैं। मुझे लगा शायद मेरे आने के कारण इतनी ख़ुशी मिली है लेकिन यह मूल कारण नहीं था।
उस अतुलनीय ख़ुशी का मूल कारण तो किसानों को लागत मूल्य से 50 फीसदी ज्यादा का फायदा था।

चेहरे पर मुस्कान, मीठी बातें, सुकून..सब कुछ देखकर लगा कि “हाँ अब सब कुछ ठीक है..आखिर इतना विकास जो हो रहा है।”

यात्रा बड़ी सुखद रही, आप भी कभी जाइये सी-प्लेन में।


यह लेख आशीष झा ने लिखा है।