‘कुमार’ गैंग से सावधान रहना बेहद जरूरी है!

सोशल मीडिया पर एक तबका नाम के हिसाब से दलितों का रहनुमा बनने की कोशिश करते नजर आता है। इसके लिए बाकायदा एक प्रक्रिया पूरी की जाती है, जिसमें पहला पड़ाव है अपने नाम के आगे ‘कुमार’ लिखना। इस जमात की दीक्षा के हिसाब से सबसे पहले वह इंसान इस समाज का सबसे बड़ा गुनहगार है, जिसके नाम के आगे उसकी जाति लिखी हुई है, इस बात पर विश्वास ना हो तो कभी किसी ‘कुमार’ से तर्क वितर्क करके देखिए, थोड़ी देर में आपको पता चलेगा आपके सारे तर्क सिर्फ इस वजह से खारिज हो रहे हैं कि आपके नाम के आगे कोई जाति विशेष लिखी गई है। आपमें इतनी गैरत बची हुई है कि आप अपनी जो जाति सरकारी फॉर्म और अन्य डॉक्यूमेंट्स में लिखते आए हैं, उससे मुंह नहीं मोड़ रहे हैं और फेसबुक/ट्विटर पर भी उसी नाम से हैं। बस यहीं से आप कुमारों की नजर में खारिज हो चुके हैं।

इनके पास तीन-चार जुमले भी नोटेड मिलेंगे। बात-बात में जय भीम बोलना मस्ट होता है जैसे आजकल हर बात में वंदे मातरम बुलवाया जाता है। बाबा साहब की आत्मा को भी इस बात से दुख होता होगा कि ये कुमार किस तरह दलितों के नाम पर खुद को हीरो बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इनके लिए न्याय की परिभाषा और न्याय दिलाने की कोशिश भी दोनों पक्षों की जाति देखने के बाद ही शुरू होती है। एक पक्ष दलित और दूसरा सवर्ण हो तो इनके लिए कार्यवाही शुरू होने से पहले ही फैसला हो जाता है। इन माननीयों का निर्णय आ जाता है कि ब्राह्मणवादी समाज में दलित बेहद दबे-कुचले हुए हैं। बेशक ये सच है कि कई जगहों पर दलित आज भी ऐसी स्थिति में हैं कि उसे देखने के बाद समाज को शर्म आनी चाहिए लेकिन इस आधार पर पूरे देश के दलितों को शोषित और सवर्णों को शोषक साबित करना कहीं से भी उचित नहीं है।

आप फेसबुक पर 10 कुमारों को फॉलो करिए। 2 दिन में आपको ऐसा लगने लगेगा कि हम आज भी जातिवाद के ऐसी जंजीर में जकड़े हुए हैं कि समाज टूटने की ओर है। हम जातिवाद से घिरे जरूर हैं लेकिन कुमारों ये जान लीजिए कि आप हमें उससे निकाल नहीं रहे बल्कि उसी में और गहरा धकेल रहे हैं। आप दलितों को एक सामान्य इंसान नहीं उनको भी   सिर्फ ‘कुमार’ बना रहे हैं, आप हर घटना और हर मुद्दे में दलित एंगल ढूंढ रहे हैं। अगर आप इसके पीछे तर्क दे रहे हैं तो ‘कुमार’ साहब कभी जमीन पर उतरिए। रिक्शा चलाकर कमाए पैसे से ब

च्चो की फीस भरने की बजाय दारू पी लेने वाले दलित भाइयों को समझाइए कि आप दलित हैं और आपको आपके बच्चों को पढ़ाकर आगे भेजना है लेकिन आपसे ये नहीं होगा साहब!

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कारण है कि फेसबुक से आगे आपकी दुनिया समाप्त है। जमीन पर दलितों को समझा पाने की कुव्वत आपमें नहीं है। बाबा साहब के सपनों को पूरा करने की हिम्मत और नीयत भी आपमें नहीं है। आपमें है तो सिर्फ किसी ब्राह्मण या सवर्ण के खिलाफ कुंठा, जिसे आप दलित विरोधी बताकर अपना हित साधने और बदला लेने में लगे हैं। आप खुद को 5 स्टार कुमार बनाने के चक्कर में एक पूरी नस्ल के मन में तथाकथित सवर्णों और दलितों के बीच दीवार खड़ी करते जा रहे हैं। आपस में मिलकर रह रहे लोगों को आप मजबूर कर रहे हैं कि वे अपनी लिखी जाने वाली जाति को अपने माथे पर सजा लें, तिलक लगाने वाले से सिर्फ इसलिए नफरत कर लें कि तिलकवादी कट्टरपंथ नुकसानदायक है।

इसलिए हे कुमारों! दलितों का रहनुमा बनने का स्वांग करना बंद कर दो। कुमार वाली एक नई नस्ल मत बनाओ जो समाज में एक ऐसी लकीर खींच दे जो ना सिर्फ सवर्णों और दलितों को आपस में बांट दे। ऐसी नस्ल मत बनाइए जो खुद के नाम के आगे कुमार ना लगाने वाले दलितों को दलितों से ही अलग करते हैं।