कैसे संभलेगी कश्मीर की नैया राज्यपाल भरोसे

अगर केंद्र सरकार के पास संसद में बहुमत हो तो वह किसी राज्य में भी अगर चाहे तो तांडव करा सकती है. ऐसे राज्य में तो और भी सरकार को असीमित अधिकार मिल जाते हैं जहां पहले ही संवैधानिक मशीनरी बहुत बेहतर ढंग से काम न कर पा रही हो. मामला जम्मू-कश्मीर का हो तो सीन ही अलग हो जाता है.
हाल ही में पीडीपी और बीजेपी का अवसरवादी गठबंधन टूटा. सरकार बनाने के लिए लालायित पार्टियों के इस प्रयास को अवसरवादी गठबंधन ही कहेंगे वरना अलगाववादियों के साथ सॉफ्ट रवैया रखने वाली पीडीपी के साथ बीजेपी कभी सरकार नहीं बनाती.

पीडीपी और बीजेपी की साझा सरकार गिरने के एक दिन के अंदर ही जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो गया. राज्यपाल एन एन वोहरा ने उन्नीस जून को ही राष्ट्रपति से राज्यपाल शासन लगाने की गुहार लगा चुके थे. राष्ट्रपति का इसे मंजूरी देना भी सौ फीसदी तय ही था.

वोहरा का कार्यकाल समाप्त होने के बेहद करीब है. राज्यपाल शासन लगने के बाद प्रदेश के मुखिया वही हो गए हैं. कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन ने खूब पत्थरबाजी देखी है. उग्रवाद तांडव करने को आतुर है. आतंकवादी घटनाएं रोज देखने को मिल रही हैं. कश्मीर में आतंकियों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि उन्हें सेना, सीआरपीएफ और पुलिस पर हमला करने में जरा भी वक्त नहीं लगता. कुछ महीने के बचे हुए कार्यकाल में वोहरा क्या कर पाते हैं यह देखने वाली बात होगी.

शांति कायम होगी या उग्रवादियों के खिलाफ मजबूरन सैन्य ऑपरेशन को बढ़ावा देना होगा. कश्मीर में हालात बेहद खराब हो गए हैं. अब सिर्फ सेना के दम पर वहां शांति नहीं लाई जा सकती है.

 

राजनीतिक व्यवस्था को दुरुस्त करना आसान नहीं है. कश्मीर में परिस्थितियां बेहद उलट गई हैं. किसी स्थाई सरकार को भी वहां शांति बहाल करने में काफी वक्त लग सकता है. देश के एक बड़े तबके को लगता है कि कश्मीरी उग्रवादी हैं. कश्मरियों को लगता है कि उनका शोषण होता है.

 

सरकार गिरने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेहबूबा ने केंद्र को चेतावनी दी थी कि जम्मू-कश्मीर में सख्त नीति काम नहीं करेगी. राज्यपाल को एक उखड़ी हुई व्यवस्था मिली है जिसे पटरी पर लाने में किसी की भी नानी याद आ जाए. कश्मीर में हिंदुओं की पवित्र यात्रा शुरू होने वाली है. कश्मीर में अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू होने वाली है.

गृहमंत्रालय का रमजान के दौरान एकतरफा सीजफायर रोकने का फैसला भी कश्मीर में शांति नहीं बहाल कर सका. सीजफायर रुकने के बाद कश्मीर में 73 आतंकी हमले हुए थे और जो सीजफायर के पहले महीने की तुलना में करीब 53 ज्यादा थे. राज्यपाल एक मुश्किलें अनेक. राज्यपाल के सामने ऑपरेशन ऑलआउट, हुर्रियत समेत अलगाववादियों से निपटने की चुनौती है. वोहरा कैसे डील करेंगे यह वह ही जानें. ऐसा भी हो सकता है कि मोदी सरकार के निर्देशों पर वोहरा काम करें. दरअसल होना वही है.

वोहरा को संभालने के लिए ऐसा बिगड़ैल हाथी मिला है जो तांडव करने को आतुर है. वोहरा कैसे महावत साबित होंगे यह आने वाले दिनों में ही पता चल सकता है. वोहरा पिछले 10 सालों से राज्य के राज्यपाल हैं. प्रशासक के तौर पर उनकी पारी काफी सफल रही है. जबतक कश्मीर को स्थाई सरकार नहीं मिलती तब तक देखते हैं कि किस तरह प्रदेश को काबू में कर पाते हैं.